बलरामपुर, 15 जून । छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में अपनी ऐतिहासिकता, प्राचीनता पुरातात्विकता को लेकर विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और जिले को ख्याति दिलाने वाला एक मात्र ग्राम पंचायत डीपाडीह है। यहां शैव कालीन सभ्यता के साथ 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच निर्मित दोहरे गर्भगृह वाला शिव मंदिर का भग्नावशेष आज भी विद्यमान है। प्रतिवर्ष यहां सभी मौसम में पर्यटकों, जिज्ञासुओं और शोधार्थियों का आना जाना लगा रहता हैं। यह स्थल भारतीय पुरातत्व विभाग भारत सरकार द्वारा संरक्षित घोषित किया गया है जिसके कारण इस स्थल की लगातार निगरानी की जाती है।

बलरामपुर जिले के ग्राम पंचायत डीपाडीह नामक कस्बा से कुछ ही दूर स्थित सावंत सरना नामक गांव में कनहर नदी के तट पर ढेर सारे पेड़ों के झुरमुट के करीब खुले आसमान के नीचे काफी दायरे में मुख्य मंदिर का परिसर भग्नावशेष के रूप में विद्यमान है।

परिसर के अंदर दो गर्भगृह है जिन्हें महेश पार्वती का गृह माना जाता है। स्थानीय निवासी पंचम कुशवाहा बताते है कि प्राचीन काल में यहां शैवकालीन सभ्यता दूर-दूर तक फैली हुई थी। इसी काल में 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच इस मंदिर का निर्माण शैव साधकों द्वारा कराया गया था। तब यहां एक घनी आबादी निवास करती थी जिसके पुरावशेष यत्र -तत्र आज भी देखे जा सकते हैं।

एक युद्ध में नष्ट हुआ था यह नगर

इतिहासकार कुशवाहा बताते है कि अति प्राचीन काल में जब यहां के राजा सामंत थे और यह क्षेत्र विकास के चरम पर था तब यहां के राजा सामंत और टांगीनाथ के बीच भीषण युद्ध हुआ था। तब यहां की रानियों ने एक बावड़ी में कूदकर जौहर कर लिया था। धीरे-धीरे बाद में यहां की पूरी सभ्यता नष्ट होती चली गई। बहरहाल सरकार द्वारा यदि इस स्थान को विशेष रूप से केन्द्र में रखकर नए सिरे से कार्य किया जाए तो विश्व के मानचित्र में बलरामपुर का नाम सबसे ऊपर हो सकता है।

फिलहाल तो यह अपने ऊपर पड़े रहस्यों की धूंध के छंटने का इंतजार कर रहा है। देखना है कि इस भग्नावशेष रूपी अहिल्या का उद्धार करने कोई राम कब आते हैं।

यहां अनेक दुर्लभ प्रतिमाएं बिखरी है

सामंत सरना में उमा-महेश्वर मंदिर के आसपास और भी अनेक दुर्लभ प्रतिमांए टूटी-फूटी अवस्था में बिखरी पड़ी हैं, उनमें सामंत सरना, सेमलटीला, रानी पोखरा, बोरजो टीला, आमाटीला सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र है। यहां एक विशाल नंदी की प्रतिमा विद्यमान है। गर्भगृह के अन्दर महेश्वर का लगभग सात फीट ऊंचा विशाल शिवलिंग स्थित है। इसके अलावा देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, कुबेर, कार्तिकेय, देवी चामुण्डा, महिषासुर मर्दिनी के साथ अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमा विद्यमान है।

बोरजो टीले के पास एक सूर्य मंदिर का अवशेष भी खंडित अवस्था में दिखाई देता है। यहां अनेक कुंडल, एक चक्र घोड़े और सारथी भी नग्न अवस्था में पड़े हुए हैं जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अपने स्वर्णिमकाल में यहां की सभ्यता कितनी उन्नत और कितनी विकसित रही होगी। फिर भी अभी इसका वास्तविक सुनहरा अतीत आना शेष ही है और नए सिरे से अध्ययन और अनुसंधान की मांग करता है।

1988 में हुई थी पहली खुदाई

पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, सन् 1988 में यहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा सामंत सरना नामक इस स्थल की पहली खुदाई हुई थी और बड़े पैमाने पर यहां प्राचीन मूर्तियां भग्नावस्था में पाई गई थीं। तब इसे 8 वीं सदी के आसपास का होना बताया गया था। हालांकि कालांतर में यहां निरंतर खेती आदि के कारण होने वाली जुताई के कारण बहुत सारी मूर्तियां नष्ट हो गई तो काफी कुछ लोग इन्हें उठाकर अपने घर भी ले गए। वर्तमान में यहां जो भी पुरावशेष विद्यमान हैं उसमें अधिकांश मूर्तियां भगवान शिव की पाई गई हैं। मंदिर की शिल्पकला और पत्थरों पर उत्कीर्ण कला अनायास सबको अचम्भित कर देता है।