उदयपुर, 05 नवम्बर। पेड़, पहाड़, पानी व समग्र पर्यावरण संरक्षण राजनीतिक दलों की प्राथमिकता नहीं बनने से उदयपुर सहित पूरा राजस्थान विविध संकटों का सामना कर रहा है।

यह चिंता रविवार को आयोजित झील संवाद में व्यक्त की गई। झील संरक्षण समिति से जुड़े विशेषज्ञ डॉ. अनिल मेहता ने कहा कि विगत 30 वर्षों में झीलों, नदियों के कैचमेंट क्षेत्र को सर्वाधिक नुकसान हुआ है। आज भी बड़े पैमाने पर पहाड़ कट रहे हैं। सहनीय क्षमता से अधिक पर्यटन पानी, मिट्टी व हवा को दूषित कर रहा है। झीलों की सीमाओं को घटा कर झीलों को छोटा कर दिया गया है। प्रशासन व शासन पूरी तरह भूमाफिया व बड़े होटल समूहों के नियंत्रण में रहते आए हैं। न्यायालयी निर्णयों तक की अवेहलना हो रही है। जो दल सत्ता में नहीं होते हैं, वे भी सत्ताधारी दलों के झील, नदी, पहाड़ विरोधी निर्णयों का विरोध नही करते हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।

झील विकास प्राधिकरण के पूर्व सदस्य तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि झीलों के टापू तक बेच दिए गए हैं। वहां होटले बन गई हैं। छोटे तालाब कॉलोनियों की भेंट चढ़ गए हैं। पानी आवक व जावक के कई प्राकृतिक नाले नष्ट हो गए हैं। इससे भूजल पुनर्भरण रुक गया है तथा मूल जल प्रवाह तंत्र नष्ट हो गया है। हालात यह है कि इको सेंसिटिव जोन भी पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित नही रखे जा रहे हैं।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि पेयजल की झीलों में मोटरचलित नावों से पर्यटकों का यातायात तथा झीलों के ऊपर पर्यटन हेलिकॉप्टर उड़ान पीने के पानी की गुणवत्ता तथा झील पर्यावरण तंत्र को खराब कर रहे हैं, लेकिन पेयजल स्रोतों की सुरक्षा व संरक्षण राजनीतिक दलों की प्राथमिकता नहीं है।

झील प्रेमी कुशल रावल ने कहा कि सरकारें बदलती रहीं, लेकिन सीवरेज प्रदूषण की स्थिति जस की तस है। आज भी झीलों में सीवर रिस रहा है तथा झीलों का पानी सीवर लाइनों में व्यर्थ बह रहा है। वरिष्ठ नागरिक द्रुपद सिंह व रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि समस्त राजनीतिक दलों को एक मंच पर आकर शपथ लेनी चाहिए कि वे सत्ता पक्ष में हों या विपक्ष में, झीलों व नदी को नुकसान पहुंचाने वाले किसी कृत्य में शामिल नही होंगे व मिलकर उदयपुर के पर्यावरण को बचाएंगे। संवाद से पूर्व बारी घाट पर श्रमदान कर गंदगी व खरपतवार को हटाया गया।