झीलों का शहर उदयपुर सिर्फ झीलों का नहीं, मंदिरों का भी शहर है

फर्रियां कम पड़ गईं, राम पताकाओं के बढ़ गए भाव

-कौशल मूंदड़ा-

उदयपुर। किसी भी तरफ चले जाइये, चाहे पूरब में जाइये या पश्चिम में, उत्तर में जाइये या दक्षिण में, इन दिनों थोड़ी-थोड़ी दूरी पर केसरिया फर्रियां फरफराती नजर आ रही हैं। यह फर्रियां इस बात की गवाही दे रही हैं कि झीलों का शहर सिर्फ झीलों का ही नहीं है, यह मंदिरों-देवरों-स्थानकों का भी शहर है। यहां पग-पग पर मंदिर-देवरे हैं और आज उन सभी मंदिर-देवरों में उत्सवी रंग बरस रहे हैं।

दरअसल, सोमवार 22 जनवरी को अयोध्या में होने जा रहे भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर पूरा देश उत्सव मनाने को आतुर हैं और उसी को लेकर जगह-जगह सजावट हो रही है। कहीं बाजार सजे हैं तो कहीं लोगों ने घरों पर भी रोशनी की है। इस उल्लास भरे माहौल में यह भी तय किया गया है कि कोई मंदिर, कोई देवालय, कोई स्थानक इस अवसर पर उत्सवी रंग से नहीं चूकना चाहिए। ऐसे में गांव-ढाणियों से लेकर शहर-महानगरों की गलियों तक में स्थित छोटे-छोटे देवरों पर भी सजावट हुई है और पताकाएं लगाई गई हैं।

उत्सवी तैयारियों के दौर में रविवार को जब उदयपुर शहर जिसे हम परकोटे के अंदर का पुराना शहर बोलें तो ज्यादा उचित होगा, इस पुराने शहर की ओर किसी भी दिशा में प्रवेश करने पर फर्रियां इस उत्सव का ऐलान करती हुई नजर आ रही हैं। यह फर्रियां दुकानों के आगे नहीं, बल्कि वहां सड़क किनारे स्थित किसी न किसी देवालय की सजावट के निमित्त लगाई गई हैं। दृश्य ऐसा है कि भीतरी शहर में कुछ कदमों की दूरी पर फिर से आसमान में फर्रियां नजर आ रही हैं। इसे देख क्षेत्र से अनजान व्यक्ति भी सड़क के दोनों ओर नजर डाल रहा है कि आखिर यहां कौन सा देवालय है। फर्रियां नहीं जानने वालों को भी यह अहसास करा रही है कि यहां भी एक देवालय स्थित है।

इस दृश्य को देखकर हर व्यक्ति यही कह रहा है कि उदयपुर में पग-पग पर मंदिर-देवरे हैं और कई लोग कह रहे हैं कि उन्हें कई देवरों की जानकारी अभी हो रही है। और मंदिर-देवरे इतने हैं कि उन पर लगी फर्रियां यह अहसास करा रही हैं मानो पूरा शहर ही फर्रियों से पट गया हो। फर्रियों के साथ केसरिया पताकाएं भी शहर में लहर-लहर लहरा रही हैं।

शहरवासियों की मानें तो रविवार को फर्रियां भी उपलब्ध नहीं हो पा रही थीं और केसरिया पताकाओं का बाजार भी महंगा हो गया। या तो पताकाएं उपलब्ध नहीं थीं और जहां उपलब्ध थीं, वहां भाव बढ़ गए। लेकिन, जहां-जहां मंदिर-देवरों, चौक-चौराहों पर सजावट रह गई, वे लोग जैसे-तैसे भाव-ताव करके झंडियां खरीद ही लाए।

अभी तो सोमवार का दिन सबसे बड़ा है। सोमवार सुबह से रात तक शहर के विभिन्न समाजों की ओर से विविध आयोजन होंगे, इसके लिए सजावट का दौर जारी है। नगर निगम, प्रशासन ने भी शहर को दुल्हन की तरह सजाने का ऐलान किया है। शाम को घर-घर दीप भी प्रज्वलित होंगे। तब उदयपुर शहर की छटा और भी ज्यादा जगमगाएगी। आखिर हो भी क्यों नहीं, सबके राम जो आ रहे हैं।