नई दिल्ली, 17 अक्टूबर । केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि जीवाश्म ईंधन के आयात पर 22 लाख करोड़ रुपये खर्च होता है इसलिए जीवाश्म ईंधन के आयात को तत्काल कम करने की जरूरत है। मेथनॉल, इथेनॉल और बायो-सीएनजी जैसे वैकल्पिक ईंधन के उपयोग से भारत की लॉजिस्टिक लागत कम हो सकती है। उन्हाेंने बायोमास के अधिक कुशल स्रोतों और बायोमास के लिए लागत प्रभावी परिवहन तरीकों पर अतिरिक्त शोध का भी आह्वान किया।
केंद्रीय मंत्री ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय मेथनॉल सेमिनार के उद्घाटन अवसर पर कहा कि भारत जैव ईंधन विशेषकर मेथनॉल के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। सस्ते और प्रदूषण मुक्त मेथनॉल के उपयोग में सफलता मिल रही है। कम गुणवत्ता वाला कोयला जिन राज्यों में उपलब्ध है, उनका उपयोग मेथनॉल बनाने के लिए भी किया जा रहा है। गडकरी ने मेथनॉल पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार और एक्सपो आयोजित करने के लिए नीति आयोग की सराहना की।
गडकरी ने कहा कि फसल अवशेषों के उपयोग की पहल देशभर में किसानों की आय बढ़ाने में मदद कर रही है। अपशिष्ट से ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से चावल के भूसे से बायोसीएनजी का उत्पादन पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले से हो रहा है। चावल के भूसे का बायोसीएनजी में रूपांतरण अनुपात लगभग 5:1 टन है।
गडकरी ने कहा कि वर्तमान में हम पुआल का पांचवां हिस्सा संसाधित कर सकते हैं लेकिन बेहतर योजना के साथ हम वैकल्पिक ईंधन के लिए कच्चे माल के रूप में पुआल का उपयोग करके पुआल जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बढ़ते प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन के आयात के महत्वपूर्ण मुद्दों से निबटने के लिए भारत को एक ऐसी नीति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है जो लागत प्रभावी, स्थानीय, आयात-प्रतिस्थापन उन्मुख और रोजगार पैदा करने वाली हो।
इस अवसर पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष सैमिनबेरी, नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद उपस्थित थे। गडकरी ने एक्सपो का भी दौरा किया जहां मेथनॉल आधारित उत्पादों और मशीनरी का प्रदर्शन किया।