कोलकाता, 8 अगस्त ।
लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा
मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा,
मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे
कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा
ये पंक्तियां देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते सर्वोच्च बलिदान देने वाले सात लाख 32 हजार क्रांतिकारियों की वतन के प्रति जज्बे को जाहिर करती हैं। कुछ क्रांतिकारियों को तो पूरा देश बड़े शान से याद करता है पर कई ऐसे गुमनाम थे जो मां भारती की बुलंदी की बुनियाद में घोर अंधेरा और गुमनामी ओढ़कर सो गए। उसी बुनियाद पर आज बुलंद भारत का रुतबा विश्व पटल पर कायम है। ऐसे ही एक लाल थे पश्चिम बंगाल के तारा पद गुइन।
1942-43 के समय जब पूरे देश में अकाल पड़ा था तब द्वितीय विश्वयुद्ध का सामना कर रही अंग्रेजी फौज भारत से किसानों की कड़ी मेहनत से उगने वाला अन्न लूट कर विदेश ले जा रही थी। इधर देशवासी भूखों मरने लगे थे। जो मुट्ठी भर अन्न उगता था उसे जबरदस्ती लेने के लिए अंग्रेज उन पर बर्बर अत्याचार कर अनाजों को ट्रेनों के जरिए विदेश रवाना कर देते थे। क्रांतिकारी तारा पद से यह सहा नहीं गया और बीरभूम जिले के बोलपुर स्टेशन पर साथियों के साथ मिल कर उस ट्रेन को घेर लिया जिससे अनाज जा रहा था। अंग्रेजी हुकूमत कितनी बर्बर और आतताई थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि निहत्थे क्रांतिकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग हुई और तारा पद के जिस्म का कतरा कतरा गोलियों से छलनी हो गया। वहीं, मातृभूमि के चरणों में बलिदान हो गए लेकिन ट्रेन को रवाना होने नहीं दी। उनके साथ सैकड़ों क्रांतिकारी घायल हुए थे जो बाद में अंग्रेजों की ताबूत में आखिरी कील बने। इस हिंसक क्रांति का डर अंग्रेजी हुकूमत में ऐसा फैला कि उसके बाद बोलपुर स्टेशन से भारत का एक भी दाना विदेश नहीं भेजा गया। तारा पद आजादी की लड़ाई के इतिहास में ऐसे गुमनाम हैं कि उनकी एक तस्वीर भी उपलब्ध नहीं है। बोलपुर में एक सड़क का नाम उनके नाम पर है यह जर्जर तस्वीर उसी सड़क की है। भारत सरकार ने बाद में इन क्रांतिकारियों की याद में बोलपुर स्टेशन परिसर में 2006 में एक स्मारक बनवाया जिसका अनावरण तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने किया। भारतीय रेलवे में हूल एक्सप्रेस इन्हीं क्रांतिकारियों के नाम पर चलाई है जो हावड़ा स्टेशन से खुलकर बीरभूम के सिउड़ी तक जाती है जो क्रांतिकारियों का गढ़ था।
इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा अपनी किताब अगस्त क्रांति के बलिदानियों में लिखते हैं कि तारा पद इतिहास में गुमनाम रहे हैं कि शायद इसी वजह से उनका जन्म कब किस वर्ष हुआ यह भी ज्ञात नहीं है। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला अंतर्गत बोलपुर में उनका जन्म हुआ था। यहां रेलवे के बर्धमान खंड में बोलपुर नाम का एक मशहूर रेलवे स्टेशन है। यहां पास में तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर विश्वविख्यात शांति निकेतन भी है जहां कभी गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप वैश्विक शिक्षा के लिए विश्व भारती की स्थापना की थी।
1942 में आजादी के लिए जब क्रांतिकारी पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ अगस्त क्रांति छेड़े हुए थे तो बंगाल भी इससे अछूता नहीं था। बोलपुर में क्रांतिकारियों का नेतृत्व तारा पद कर रहे थे। उसी समय अंग्रेज अपने विस्तृत साम्राज्य को बचाने के लिए दुनिया भर में द्वितीय विश्व युद्ध लड़ रहे थे और इधर भारत में 1942-43 के दौरान घोर अकाल पड़ा था जिसकी वजह से भारतवासी खाने बगैर मर रहे थे। देशवासियों को एक बार खाना खाकर दो-दो दिन तक भूखा रहना पड़ता था। इसके बावजूद अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों से अनाज वितरित कर बोलपुर रेलवे स्टेशन के जरिए दुनिया के विभिन्न देशों में मोर्चे पर तैनात अपने सिपाहियों के लिए भेजना शुरू कर दिया। एक तरफ भारतवासी मेहनत से अन्न उगाते थे और उसे अंग्रेज बर्बर और अत्याचारी तरीके से लूट कर अपने सिपाहियों को भेज रहे थे। देशवासियों की यह दशा क्रांतिकारी तारा पद गुइंन से देखी नहीं गई। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर बोलपुर रेलवे स्टेशन पर हमले की योजना बनाई।
29 अगस्त 1942 को पूरे बोलपुर क्षेत्र में एक सामान्य हड़ताल का आयोजन किया गया जो पूर्णतया सफल रही। तारा पद के नेतृत्व में हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने रेलवे स्टेशन पर हमला बोल दिया और अंग्रेजों के लिए हो रही अनाज की ढुलाई को रोक दिया।
कई क्रांतिकारी आसपास की सड़कों को जाम कर चुके थे जिसकी वजह से वहां मौजूद अंग्रेजी सिपाहियों को बाहर से मदद नहीं मिली। इसके बाद ग्रामीणों पर बर्बर तरीके से लाठीचार्ज शुरू हुआ जिसके बाद हमलावरों ने सिपाहियों को पीटना शुरू कर दिया। इसकी सूचना मुख्यालय में पहुंची तो वहां से निहत्थे क्रांतिकारियों पर बिना देरी किए फायरिंग के आदेश दे दिए गए। अंधाधुंध गोलियां चलने लगीं और सैकड़ों ग्रामीण घायल हो गए।
तारा पद ने देखा कि कई लोग मारे जाएंगे। इसके बाद गोली चलाने वाले अंग्रेजों से वह अकेले ही उलझ गए और इस दौरान उन्हें कई गोलियां मारी गईं। खून से लथपथ होकर वह गिर पड़े। इधर तारा पद को इस हालत में देखकर ग्रामीण और उग्र हो गए तथा स्टेशन पर तोड़फोड़ आगजनी शुरू कर दी जिसकी वजह से अनाजों को विदेश भेजने का काम रोक दिया गया। दूसरी ओर स्टेशन पर खून से लथपथ हालत में पड़े तारा पद ने अपना जीवन सुमन मातृभूमि के चरणों में समर्पित कर दिया था।
इस क्रांतिकारी और क्रांति की याद चिरस्थाई बनाए रखने के लिए बोलपुर स्टेशन परिसर में कांस्य धातु से एक स्मारक का निर्माण किया गया जिसका अनावरण लोकसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने 29 अगस्त सन 2006 को किया था।