चित्रकूट (सतना), 27 अक्टूबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संस्कृत भाषा जानने को कुछ लोग पिछड़ापन का प्रतीक मानते हैं, ये मानसिकता हजारों साल से परास्त होती आई है और आगे भी कामयाब नहीं होगी।
मोदी मध्यप्रदेश के सतना जिले के चित्रकूट में तुलसी पीठ की ओर से आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और तुलसी पीठ के प्रमुख स्वामी रामभद्राचार्य भी उपस्थित थे। समारोह में मोदी ने स्वामी रामभद्राचार्य लिखित तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य का स्नेह उन्हें अभिभूत कर देता है। उन्होंने आशा जताई कि उनकी पुस्तकें भारत की महान परंपरा को और समृद्ध करेंगी।
इस दौरान मोदी ने संस्कृत भाषा के संदर्भ में कहा कि दुनिया में हजारों वर्षों में कितनी ही भाषाएं आईं और चलीं गईं, पर हमारी संस्कृत आज भी अटल है। संस्कृत समय के साथ परिष्कृत हुई, पर प्रदूषित नहीं हुई। इसका कारण संस्कृत का परिपक्व व्याकरण विज्ञान है, केवल 14 महेश्वर सूत्रों पर टिकी ये भाषा हजारों सालों से शस्त्र और शास्त्र दोनों विधाओं की जननी रही है। वेद की ऋचाएं भी इसी में हैं, धन्वंतरि और चरक ने आयुर्वेद का सार इसी भाषा में लिखा है। इसी भाषा में नाट्य और संगीत शास्त्र का उपहार मिला है, अंतरिक्ष विज्ञान और युद्ध कला के ग्रंथ भी इसी में लिखे हैं। उन्होंने कहा कि हम ध्यान से देखें, तो भारत के विकास के हर पक्ष में संस्कृत का योगदान मिलेगा। दुनिया के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर शोध होता है।
इसी क्रम में उन्होंने कहा कि लिथुआनिया के राजदूत ने भी अभी संस्कृत सीखी। उन्होंने कहा कि गुलामी के कालखंड में भारत को जड़ों से उखाड़ने के प्रयास हुए, इन्हीं में संस्कृत का विनाश भी शामिल था। हम आजाद हुए, पर जिनमें गुलामी की मानसिकता रही, वे संस्कृत से बैर पाले रहे। लुप्त भाषाओं के दूसरी भाषाओं के शिलालेख मिलने पर ऐसे लोग उसका महिमामंडन करते रहे, पर संस्कृत का सम्मान नहीं किया। उन्होंने कहा कि दूसरे देश के लोग मातृभाषा जानें तो ये लोग प्रशंसा करेंगे, पर संस्कृत जानने को पिछड़ेपन की मानसिकता मानते हैं। ऐसी मानसिकता के लोग पिछले एक हजार साल से हारते आ रहे हैं और आगे भी कामयाब नहीं होंगे। संस्कृत केवल परंपराओं की भाषा नहीं, ये हमारी प्रगति और पहचान की भाषा है। बीते नौ साल में सरकार ने इसके प्रसार के कई प्रयास किए हैं।
उन्होंने कहा कि रामभद्राचार्य ऐसे संत हैं, जिनके अकेले ज्ञान पर कई विश्वविद्यालय शोध कर सकते हैं। बचपन से ही भौतिक नेत्र ना होने के बावजूद उनके प्रज्ञा चक्षु इतने विकसित हैं कि उन्हें सभी वेद कंठस्थ है। ऐसी मेधा व्यक्तिगत नहीं, पूरे राष्ट्र की धरोहर होती है, इसीलिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में स्वामी रामभद्राचार्य को पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी रामभद्राचार्य जितना धर्म और आध्यात्म में सक्रिय हैं, उतने समाज और राष्ट्र के लिए भी मुखर हैं। स्वच्छता के नौ रत्नों में नामांकित होने के बाद उन्होंने पूरी जिम्मेदारी उठाई। मोदी ने कहा कि देश के गौरव के स्वामी रामभद्राचार्य के सभी संकल्प अब पूरे हो रहे हैं। जिस राम मंदिर के लिए उन्होंने इतना योगदान दिया, वो भी पूरा होने जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के अमृतकाल में देश विकास और विरासत को साथ लेकर चल रहा है। चित्रकूट के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यहां आध्यात्मिक आभा और प्राकृतिक सौंदर्य दोनों हैं। केन बेतवा लिंक परियोजना, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और डिफेंस कॉरिडोर जैसे प्रयास इस क्षेत्र की तस्वीर बदल देंगे।