कोलकाता, 28 फरवरी। लोकसभा चुनाव के लिए पूरे देश में माहौल बनने लगा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिलों के दौरों में जुट गई हैं, चुनाव प्रचार में ताकत झोंक रही हैं। उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के आईएनडीआई गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद उन्होंने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से उत्तर बंगाल की सीट बेहद हाई-फाई है क्योंकि यहां तमाम कोशिशों के बावजूद तृणमूल कांग्रेस अपने पांव नहीं जमा पाई है। ऐसी ही एक सीट है कूचबिहार लोकसभा सीट। यहां से भाजपा के निशीथ प्रमाणिक सांसद हैं और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री भी हैं।
हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वह तृणमूल छोड़कर ही भाजपा में आए थे। इस सीट पर इस बार भी भारतीय जनता पार्टी की ओर से उन्हें ही टिकट मिलने की उम्मीद है, जबकि तृणमूल कांग्रेस नया उम्मीदवार उतारेगी। 2019 में तृणमूल ने परेश चंद्र अधिकारी को टिकट दिया था, वह शिक्षक नियुक्ति भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हुए हैं, और उनकी बेटी की नौकरी भी गई है इसलिए उम्मीदवार बदलने की संभावना है। माकपा और कांग्रेस साझा उम्मीदवार उतार सकते हैं जिससे त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं।
भौगोलिक स्थिति
कूचबिहार पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से का एक महत्वपूर्ण जिला है। कूचबिहार बंगाल की उन लोकसभा सीटों में से एक है, जो ऐतिहासिक होने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों और अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। यहां लंबे समय तक वामपंथी दल फारवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा विजय रहीं। रेणुका सिन्हा के निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस के पाथर प्रतिमा राय जीतने में कामयाब रहे।
कूचबिहार लोकसभा सीट अभी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इसके तहत सात विधानसभा सीटें मसलन मठाबगान, शीतलकुची, सिताई, अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं जबकि कूचबिहार उत्तर एवं दक्षिण, दिनहाटा और नाटाबाड़ी सामान्य सीटें हैं।
कूचबिहार अपने आकर्षक मन्दिरों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। प्राचीन समय में यहां पर कोच राजाओं का शासन था और वह नियमित रूप से बिहार की यात्रा किया करते थे। इस कारण इसका नाम कूचबिहार पड़ा। मदन मोहन बाड़ी, कूचबिहार राजबाड़ी, अर्धनारीश्वर मन्दिर, कामतेश्वरी मन्दिर, सिद्धांत शिव मन्दिर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। दिल्ली से इसकी दूरी 1,584.8 किलोमीटर है।
राजनीतिक इतिहास
1951 के चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की और 1962 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। 1962 के चुनाव में यहां से ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने जीत हासिल की। 1963 में हुए उप-चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की। 1967 के चुनाव में एक बार फिर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने जीत दर्ज की। 1971 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मारी। 1977 में चुनाव में यहां ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने जीत दर्ज की। 2009 तक इस सीट पर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा। 2014 में पहली बार इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल को जीत हासिल हुई। 2019 में इस सीट को भाजपा ने तृणमूल से छीन ली और निशीथ प्रमाणिक सांसद चुने गए।
मतदाताओं का आंकड़ा
2019 में कुल वोटरों की संख्या 15 लाख 24 हजार 683 थी, जिनमें से कुल पुरुष मतदाता सात लाख 78 हजार 609 और महिला मतदाता सात लाख 41 हजार 742 थीं। 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 84.04 फीसदी था। भाजपा के निशीथ प्रमाणिक को सात लाख 31 हजार 594 वोट मिले थे।