कानपुर, 21 दिसम्बर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए विभिन्न परीक्षणों में पाया गया कि नाइट्रोजन की अनुशंसित आधारिक मात्रा के साथ टॉप-ड्रेसिंग के रूप में नैनो यूरिया के दो छिड़काव करने से उपज में तीन से आठ प्रतिशत तक की वृद्धि होती है। यह किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी।
यह जानकारी गुरुवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि एवं मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में कही है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया के प्रयोग से फसलों में 25-50 प्रतिशत तक की यूरिया की बचत हुई।
इफको नैनो तरल यूरिया की 500 एमएल बोतल की कीमत 225 रुपये है, जोकि पारंपरिक यूरिया की 45 किलोग्राम बोरी की कीमत से 16 प्रतिशत कम है। जिससे यह पता चलता है कि नैनो यूरिया से न केवल उपज में वृद्धि होती है, बल्कि कम मात्रा में उपयोग होने से फसल की उत्पादन लागत कम होती है।
डॉ.पांडेय ने बताया कि नैनो यूरिया से फसल को लाभ नैनो यूरिया जब पत्तियों पर छिड़का जाता है तो पौधों के स्टेमेटा और अन्य छिद्रों के माध्यम से आसानी से प्रवेश करता है और फसलों को नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करता है।
अपने विशिष्ट आकार तथा सतही क्षेत्र के उच्च अनुपात के कारण यह फसल संबंधी पोषक तत्वों की आवश्यकता को प्रभावी रूप से पूरा करता है, जिसके परिणामस्वरूप पोषण संबंधी दबाव कम होता है, जिससे पौधों की वृद्धि अच्छी होने के साथ ही अधिक उपज प्राप्त होती है।
देश में सरकार द्वारा विकसित भारत की संकल्प यात्रा के दौरान देश के कई गांवों में ड्रोन की मदद से नैनो यूरिया एवं डीएपी का छिड़काव किया जा रहा है। यहां तक की सरकार ने ड्रोन की खरीद एवं नैनो यूरिया के छिड़काव पर भारी अनुदान भी दिया जाता है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाक़ई में नैनो यूरिया के उपयोग से किसानों को कोई फायदा हो रहा है या नहीं। इसको लेकर 15 दिसम्बर के दिन लोकसभा में सवाल किया गया। जिसके जवाब में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने बताया कि देश में विकसित किया गया पहला नैनो तरल यूरिया को खड़ी फसल में डालने से उत्पादन तो बढ़ता ही है साथ ही इसकी कीमत परम्परागत उपलब्ध दानेदार यूरिया से कम होने के चलते फसल उत्पादन की लागत में भी कमी आती है।