कोलकाता, 30 जून। दक्षिण कोलकाता के कसबा स्थित लॉ कॉलेज में एक छात्रा के साथ हुए दुष्कर्म के मामले की जांच के बीच चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। आरोप है कि कॉलेज प्रशासन ने मुख्य आरोपित मनोजीत मिश्रा के आपराधिक इतिहास को नजरअंदाज करते हुए मनोजीत उसे संविदा (ठेका) पर नियुक्त कर दिया था।

सूत्रों के अनुसार, मनोजीत मिश्रा ने 2012 में इसी कॉलेज में एलएलबी कोर्स में दाखिला लिया था। लेकिन 2013 में दक्षिण कोलकाता के कालीघाट इलाके में गुंडागर्दी के एक मामले में उसका नाम सामने आया, जिसमें उस पर एक व्यक्ति की उंगली काटने का आरोप है। इस घटना के बाद उसका दाखिला रद्द कर दिया गया और वह राज्य से फरार हो गया। तीन साल बाद, जब मामला निपटा, तो वह 2017 में उसी कॉलेज में दोबारा दाखिला लेने में सफल रहा।

पहले भी लड़कियों का कर चुका है यौन उत्पीड़न

मार्च 2018 में, दो छात्राओं ने उस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, जिसके बाद उसे कॉलेज में आंशिक रूप से निलंबित कर दिया गया। हालांकि उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति मिलती रही। यह मामला आगे नहीं बढ़ा और वह नियमित रूप से कॉलेज आने लगा।

मार्च 2023 में एक बार फिर एक छात्रा ने उस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। इसके बाद दिसंबर 2023 में कुछ छात्रों ने स्थानीय थाने में शिकायत दी कि मनोजीत बाहरी असामाजिक तत्वों के साथ कॉलेज में घुसा और छात्रों के साथ मारपीट की।

इन सभी घटनाओं के बावजूद, कॉलेज प्रशासन द्वारा उसे संविदा पर नौकरी देना कई सवाल खड़े कर रहा है। कॉलेज से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मनोजीत सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक का बेहद करीबी था, जो कॉलेज की गवर्निंग बॉडी का भी सदस्य है। मनोजीत उसे “काका” कहकर संबोधित करता था।

इसी के साथ, अब इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि एफआईआर में तीनों आरोपितों —मनोजीत मिश्रा, जैब अहमद और प्रमित मुखर्जी — के पूरे नाम की बजाय केवल उनके आद्याक्षर “एम”, “जे” और “पी” क्यों दर्ज किए गए। यह तीनों आरोपित तृणमूल छात्र परिषद (टीएमसीपी) से जुड़े हैं।

विपक्षी दलों का आरोप है कि पुलिस ने जानबूझकर नाम छिपाने और राजनीतिक संबंधों को ढकने के लिए केवल आद्याक्षर का प्रयोग किया। कई कानूनी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इस मामले में पूरा नाम न लिखने का कोई औचित्य नहीं था और इससे जांच की पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।

यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है, और कॉलेज प्रशासन से लेकर पुलिस तक की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।