
गुवाहाटी, 28 जून । असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा ने संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने का आग्रह केंद्र सरकार से किया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि ये दोनों शब्द आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के जरिए जोड़े गए थे और भारत की मूल संवैधानिक भावना से मेल नहीं खाते।
मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से यग आग्रह प्रदेश भाजपा मुख्यालय, अटल बिहारी वाजपेयी भवन में आयोजित ‘द इमरजेंसी डायरी’ नामक पुस्तक के विमोचन समारोह में दिया। यह पुस्तक 1975 के आपातकाल और उस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूमिका पर आधारित है।
सरमा ने कहा कि यह सही समय है जब हम आपातकाल की विरासतों को पूरी तरह मिटा दें। ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भारत की ‘सर्व धर्म सम भाव’ की अवधारणा से मेल नहीं खाता, जो सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान को दर्शाता है। वहीं ‘समाजवाद’ भी भारत की मौलिक आर्थिक दृष्टि नहीं है। हमेशा से हमारा आदर्श ‘सर्वोदय’ और ‘अंत्योदय’ रहा है। अर्थात समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उपनिवेशवादी प्रतीकों को हटाने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि उसी तरह आपातकाल में जोड़ी गई विचारधारात्मक विरासतों को भी खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ” ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जैसे शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे। इन्हें आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के नेतृत्व में जोड़ा गया था। मैं केंद्र सरकार से अपील करता हूं कि इन्हें प्रस्तावना से हटाया जाए।”
उनकी यह टिप्पणी न केवल राजनीतिक बल्कि संवैधानिक स्तर पर भी गहन बहस को जन्म दे सकती है, विशेषकर उस समय जब भारतीय जनता पार्टी आज़ादी के बाद की विचारधाराओं और प्रतीकों को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में सक्रिय है।
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