
रांची, 22 जून । भाजपा की प्रदेश प्रवक्ता राफिया नाज़ ने कहा कि रिम्स पार्ट-2 की बात करने वाली सरकार ग़रीबों को एम्बुलेंस देने में असमर्थ है। उन्होंने कहा कि एक ओर सरकार ‘सभी को स्वास्थ्य’ का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हालात इतने भयावह हैं कि गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति समय पर अस्पताल तक नहीं पहुंच पा रहा। यह एक साधारण प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि आम नागरिकों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”
राफिया ने रविवार को“गोड्डा जिले में एक मासूम बच्ची की मृत्यु की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पूरी मानवता को झकझोर देने वाली त्रासदी है। केवल एंबुलेंस समय पर न पहुंच पाने के कारण एक मासूम की जान चली गई, जबकि परिजनों ने बार-बार सहायता के लिए कॉल किए। इसी तरह की एक और घटना चतरा जिले में घटी, जहां सुकुल भुइयां की मौत भी एंबुलेंस की देरी के कारण हुई। इन घटनाओं ने यह साफ़ कर दिया है कि झारखंड में एंबुलेंस सेवा लगभग निष्क्रिय हो चुकी है।”
उन्होंने राज्य में एंबुलेंस सेवा की स्थिति पर राफिया ने कहा, ”झारखंड में 32 प्रतिशत सेवा-योग्य एंबुलेंसे बंद हालत में हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया कि जब जनता के टैक्स से इन सेवाओं को चलाया जा रहा है तो फिर रखरखाव और मरम्मत के लिए धन का प्रबंधन क्यों नहीं हो रहा? उन्होंने ज़ोर दिया कि यदि इतनी बड़ी संख्या में एंबुलेंस निष्क्रिय हैं तो यह सीधे तौर पर जनता की जान के साथ खिलवाड़ है।” उन्होंने यह भी कहा, ”राज्य में केवल वाहनों की ही नहीं, बल्कि संसाधनों और मानवबल की भी गंभीर कमी है। कई जिलों में एक ही एंबुलेंस पर पूरा प्रखंड निर्भर है। कई गाड़ियों में प्रशिक्षित चालक और सहायक कर्मियों की भारी कमी है, जिससे आपातकालीन सेवाएं प्रभावित हो रही हैं”।
उन्होंने इसे “संवेदनशील शासन के खोखले दावे” करार दिया। उन्होंने एक और महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया कि एंबुलेंस सेवा में कार्यरत कई कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला है“। ऐसे में सरकार उनसे लगातार सेवा की अपेक्षा कैसे कर सकती है, जबकि उन्हें उनकी मेहनत का पारिश्रमिक समय पर नहीं मिल रहा?” उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कर्मचारियों का मनोबल टूटता है और सेवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
राफिया ने स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली पर गंभीर चिंता जताते हुए झारखंड सरकार और स्वास्थ्य विभाग से कहा कि पहली प्राथमिकता निष्क्रिय एंबुलेंसों की तत्काल मरम्मत होनी चाहिए ताकि वे फिर से सेवा में आ सकें। साथ ही, प्रत्येक 10,000 जनसंख्या पर कम-से-कम एक एंबुलेंस की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। उन्होंने एक स्वतंत्र निगरानी समिति के गठन की भी आवश्यकता बताई, जो हर माह सेवाओं की समीक्षा कर रिपोर्ट सार्वजनिक करे। अंततः, उन्होंने उन अधिकारियों पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की जिनकी लापरवाही से आम नागरिकों की जान गई।