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नागपुर, 27 मार्च। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का कहना है, ”कोई भी काम हाथ में लो तो उसे पूरा जरूर करो। इसके बाद भूल जाओ। आप के काम का मूल्यांकन करना जनता और मीडिया का काम है।”

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद गडकरी की अपने गृह जनपद नागपुर में सक्रियता दोगुनी हो गई है। अपने व्यस्त कार्यक्रमों से समय निकाल कर उन्होंने न्यूज एजेंसी से विशेष बातचीत में कार्यशैली पर पूछे गए सवाल पर यह टिप्पणी की।

केंद्रीय राजनीति में आने से पहले गडकरी 2009 से 2013 तक भाजपा के अध्यक्ष थे। इससे पूर्व 1995 से 1999 तक महाराष्ट्र मे पीडब्ल्यूडी मंत्री के रूप में उन्होंने कार्य किया है। उनके काम को मील का पत्थर माना जाता है। मगर अपने काम को लेकर गडकरी की राय थोड़ी अलग है। गडकरी ने कहा कि लोग पैसा, पद और प्रतिष्ठा के पीछे भागने मे पूरा जीवन खपा देते हैं। यह सभी चीजें अस्थायी होती हैं। व्यक्ति का स्वभाव और काम ही उसकी असली पहचान होती है। बतौर मंत्री वह जब भी किसी विकास परियोजना कि शुरुआत करते हैं तब उसे कभी अधूरा नहीं छोड़ते। काम पूरा होने के बाद उसे भूल जाते हैं। राजनेताओं ने कभी भी खुद को लेकर भ्रम नहीं पालना चाहिए। नेताओं के काम का मूल्यांकन करने का दायित्व जनता और मीडिया का है।

संविधान देश की आत्मा

गडकरी ने कहा कि उन्होंने हमेशा राजनीति से परे काम किया है।भाजपा ने उन्हें सभी के साथ न्याय करना सिखाया है। विकास के काम में राजनीति नहीं होनी चाहिए, नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी। सोशल मीडिया में चल रही संविधान बदलने कि चर्चा पर गडकरी ने कहा कि डॉ. आंबेडकर का संविधान हमारा सम्मान है। समाज में समानता स्थापित करना हमारे जीवन का दृढ़ विश्वास है। संविधान बदलने का सवाल ही नहीं उठता। जिन लोगों ने देश में इमरजेंसी लगाकर संविधान को तोड़ने का काम किया, वो हमारे बारे में दुष्प्रचार करते हैं। कहते हैं कि भाजपा संविधान खत्म करेंगी, आरक्षण को खत्म कर देगी। गडकरी ने कहा कि कांग्रेस जनता को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती है। इसलिए जनता को आरक्षण और संविधान के नाम पर भ्रमित करने का काम करती है।

काम से होती है व्यक्ति कि पहचान

गडकरी ने कहा कि व्यक्ति जाति, पंथ, भाषा, लिंग और पार्टी के कारण बड़ा नहीं होता वो अपने कार्यों और गुणवत्ता से बड़ा होता है। अच्छे कार्यों पर किसी का पेटेंट नहीं होता। इसलिए मैं ईमानदारी के साथ 50 लाख करोड़ रुपये के काम कर सका। मेरे ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नही लगा सकता। कोई आदमी अगर कह दे कि मुझे काम करने के लिए पैसे देने पड़े तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। मैं इसके लिए तैयार रहता हूं। राजनीति में जनता का प्रेम और विश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है।

अधिकारों कि सीमा निर्धारित हो

अमूमन सकारात्मक रहने वाले गडकरी सरकारी अधिकारियों के बर्ताव से खासे नाराज नजर आए। उन्होंने कहा अधिकारियों की सीमा निर्धारित होनी चाहिए। 1980 के फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट ने अधिकारियों को जरूरत से ज्यादा अधिकार दे रखे हैं। गडकरी ने उत्तराखंड की मिसाल देते हुए कहा कि राज्य में 10 हजार करोड़ रुपये के काम वन और पर्यावरण विभाग की एनओसी नहीं मिलने के कारण अटके हुए हैं। यदि संबंधित अधिकारियों ने जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ा होता तो यह विकास कार्य अब तक मूर्त रूप ले लेते। इसलिए पर्यावरण हा ध्यान रखना बेहद जरूरी है, लेकिन पुराने हो चुके कठोर कानूनों को बदलने कि जरूरत है।

इलेक्टोरल बॉन्ड का इरादा अच्छा

केंद्रीय मंत्री गडकरी ने देश में चर्चा का विषय बने इलेक्टोरल बॉन्ड पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि कोई भी पार्टी बिना पैसे के नहीं चलती। कुछ देशों में सरकारें राजनीतिक दलों को फंडिंग करती हैं। हमारे देश में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए हम 2017 में अच्छे इरादे के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लाए थे। इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि राजनीतिक दलों को सीधे धन मिले, लेकिन (दानदाताओं के) नाम का खुलासा नहीं किया जाएगा। इसकी वजह थी कि अगर सत्ता में पार्टी बदलती है तो समस्याएं पैदा होतीं। गडकरी ने कहा कि हम पारदर्शिता लाने के लिए चुनावी बॉन्ड की यह व्यवस्था लाए। हमारा इरादा अच्छा था। अगर सुप्रीम कोर्ट को इसमें कोई कमी नजर आती है और हमें इसमें सुधार करने के लिए कहा जाता है तो सभी दल साथ बैठकर सर्वसम्मति से इस पर विचार करेंगे।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सामान्य कार्यकर्ता के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले नितिन गडकरी को नागपुर के सुख-दुख का साथी कहा जाता है। गडकरी नागपुर को अपना संसदीय क्षेत्र नहीं घर मानते हैं। नतीजतन प्राकृतिक आपदा और कोरोना जैसी महामारी के दौर में गडकरी ने वो सब किया जो एक सदस्य अपने परिवार के लिए करता है। यही वजह है कि जनता भी उन्हें अपना मानती है। नतीजतन अपनी जीत को लेकर गडकरी आश्वस्त नजर आते हैं।