
लोहरदगा, 22 जून ।लोहरदगा जिले में कई गांवों की महिलाओं ने रविवार को जनी शिकार किया। पहान पुजार ने पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ विधिवत पूजा कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। हाथ में लाठी डंडे और पारंपरिक हथियार के साथ महिलाओं ने पुरुषों की वेशभूषा में विभिन्न गांवों में घूमकर शिकार किया। फिर एक जगह एकत्रित होकर भोजन बनाकर खाया।
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 12 वर्ष बाद महिलाएं जनी शिकार को निकलीं थीं।इससे पूर्व प्रत्येक घर में इसको लेकर जमकर तैयारियां की गई थीं।सभी घरों में महिलाओं से लेकर बच्चे,जवान,बुजुर्ग सभी उत्साह में थे।महिलाओं को जनी शिकार पर भेजने में पुरुष भी पीछे नहीं थे।।वे उनकी तैयारियां पूरी कराने में लगे थे।रविवार को पुन: जनी शिकार का शुभारंभ किया गया।
क्षेत्र की सैकड़ों महिलाएं पुरुषों की वेशभूषा में पारंपरिक हथियार के साथ शिकार के लिए गांव भ्रमण पर निकली। विभिन्न टोली मुहल्ले के अखाड़ों में गीत संगीत के साथ खुशियां मनाई गई।
मान्यता है कि 16वीं सदी में रोहतासगढ़ में मुगलों द्वारा आक्रमण किया गया था।उस समय के मुगल शासक को गुप्तचरों की ओर से सूचना दी गई थी कि आक्रमण के दिन गढ़ के आदिवासी पुरुष नशे की हालत में मदहोश होंगे।इसी सूचना पर मुगल शासक ने गढ़ पर आक्रमण किया था। इस बात की जानकारी जब रोहतासगढ़ की महिलाओं को हुई, तो वे संगठित होकर पुरुषों की वेशभूषा धारण कर मुगलों से मुकाबले के लिए डट गई और उनको पराजित कर दिया।
इसी की खुशी में तभी से हर 12 साल के बाद महिलाओं की ओर से जनी शिकार किया जाता है।मान्यता के अनुसार महिलाएं जंगल में शिकार करने के लिए जाती हैं, पर वे जंगली जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। जंगल में भी बस जनी शिकार के नाम पर खस्सी, मुर्गी, बत्तख का शिकार किया जाता है।
आज की महिलाओं में काफी जागरूकता है। मान्यता को पूरा करने के साथ पर्यावरण और जंगली जानवरों को भी सुरक्षित रखते हैं।महिलाओं की ओर से जनी शिकार अपने सीमा क्षेत्र में ही किया जाता है।शिकार में पांच से छह गांव की महिलाएं संगठित होकर शिकार के लिए जाती हैं।अपने क्षेत्र की सीमा खत्म होने के बाद उस गांव के पाहन को इसकी जानकारी दी जाती है। इसके बाद उस गांव की महिलाएं शिकार पर जाती हैं। इसी तरह से जनी शिकार आगे बढ़ता जाता है। जनी शिकार से महिलाओं के जरिये पर्यावरण संरक्षण, जंगली जानवरों को बचाने का संदेश दिया जाता है।