मंडी, 9 सितंबर कोविड के दौरान सडक़ के किनारे सब्जियां बेचना अब ग्रामीण महिलाओं की आर्थिकी का अहम जरिया बन गया है। ग्रामीण महिलाएं अब बच्चों व परिवार की देखरेख के साथ-साथ परिवार की आर्थिकी को भी सुदृढ़ बनाने का प्रयास कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो आज भी बड़े स्तर पर महिलाएं खेती-बाड़ी व पशुपालन के साथ जुड़ी हुई हैं।
मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर गलू से लेकर द्रंग के गुम्मा तक लगभग दो दर्जन से अधिक महिलाएं प्रतिदिन सडक़ किनारे मौसमी फल व सब्जियां बेचते हुए नजर आ जाएंगी। ये मेहनतकश महिलाएं प्रतिदिन अपने घर से लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर का सफर तय कर सडक़ तक पहुंचती है। इस दौरान वे खेतों में तैयार मौसमी फल व सब्जियों को पीठ पर उठाकर न केवल सडक तक पहुंचाती हैं बल्कि इन्हें बेचने का भी कार्य कर रही हैं। इससे न केवल उन्हे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए धनराशि प्राप्त हो जाती है बल्कि घर में प्राकृतिक तौर पर तैयार इन मौसमी फल व सब्जियों को एक मार्केट भी उपलब्ध हो रही है। प्रतिदिन इस राष्ट्रीय उच्च मार्ग से सैंकड़ो वाहन गुजरते हैंए ऐसे में राहगीर प्राकृतिक तौर पर तैयार इन फलों व सब्जियों को खरीदने के लिए विशेष तरजीह भी देते हैं। इससे इन ग्रामीण महिलाओं को परिवार की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी धनराशि का इंतजाम भी हो रहा है।
इस संबंध में कुछ महिलाओं से बातचीत की तो इनका कहना है कि कोविड के दौरान जब परिवार की आय के साधन बंद हो गए थे। तो उन्होंने सडक़ किनारे बैठकर फल व सब्जियां बेचनी शुरू की। इससे न केवल उन्हें उस मुश्किल दौर में आय का एक नया जरिया मिला बल्कि घर में तैयार होने वाली मौसमी फल व सब्जियां बेचने को एक मार्केट भी उपलब्ध हुई। शुरूआती दौर में मात्र कुछ महिलाएं ही सामने आई लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा दो दर्जन से भी अधिक का हो चुका है।
वहीं सब्जियां खरीदने के लिए रूके कुछ यात्रियों का कहना है कि ग्रामीण महिलाओं द्वारा बेचे जा रहे ये उत्पाद जहां पूरी तरह से प्राकृतिक हैं तो वहीं कीमत बाजार भाव से भी कुछ कम है। जिसका सीधा असर उनकी सेहत के साथ-साथ आर्थिकी पर भी पड़ता है। साथ ही कहना है कि प्राकृतिक तौर पर तैयार सब्जियां बाजारों में आजकल बमुश्किल से ही मिल पाती हैं, लेकिन आज वे यहां से टमाटर, भिंडी, तोरी, देसी ककड़ी, करेला, घीया, कद्दू, घंघेरी, प्याज, आलू, अदरक, लहसुन व मूली इत्यादि खरीद कर ले जा रहे हैं । जो पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर उगाए गए हैं तथा इनकी पौष्टिकता भी अधिक है।
ग्रामीण महिलाओं ने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाकर पशु पालन व खेती बाड़ी के साथ-साथ आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है। ग्रामीण महिलाओं का यह प्रयास निश्चित तौर पर महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम कड़ी साबित हो रहा है।