-सुनीता माहेश्वरी-

उदयपुर, 29 अप्रैल। नाम है अर्जुन सिंह, कॉलेज विद्यार्थी है, घर का पता है चित्रकूट नगर उदयपुर और मां ने वोट दिया भुवाणा के सरकारी स्कूल में बने मतदान केन्द्र पर। अर्जुन कोई खास लड़का नहीं है जिसकी चर्चा करने की जरूरत है, लेकिन उन सामान्य नागरिकों में जरूर शामिल हो गया है जिनकी उम्र 18 वर्ष को पार कर चुकी है और उन्हें इस बार वोट का अधिकार होना चाहिए था। वह अत्यंत उत्साहित भी था कि वह पहली बार वोट डालने जा रहा है। वह भी इस देश का एक अहम हिस्सा बनने जा रहा है। लेकिन, जैसे ही वह वोट देने भुवाणा के सरकारी स्कूल के अपने क्षेत्र के निर्धारित मतदान केन्द्र पर मां के साथ वोट देने पहुंचा, तो वहां मां का नाम तो था, लेकिन उसका नाम नहीं था। वह 26 अप्रैल को वोट नहीं कर पाया।

उसका सारा उत्साह काफूर हो गया। उसने पूछताछ की। उसे यह तो पता था कि वोट डालने के लिए वोटर लिस्ट में नाम होना जरूरी है, लेकिन यह पहली बार पता चला कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने के लिए उसे ही सारी प्रक्रिया को पूरा करना था। उसे न तो वोटर लिस्ट में नाम जुड़ाने के लिए जरूरी आवेदन के बारे में आज तक किसी ने बताया था, न ही उसके घर की तरफ कोई पूछने पहुंचा कि भाई यहां कोई 18 की उम्र का हुआ है।

हमें याद है, दो-तीन चुनाव पहले तक खुद पार्टी के कार्यकर्ता, वार्ड अध्यक्ष तक इस बात का ध्यान रखते थे कि किसका बच्चा 18 की उम्र का हो गया है, शादी होकर कौन बेटी बाहर गई है और कौन बहू बनकर आई है, इस सबकी खबर रखते हुए वे लोग खुद वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने से लेकर संशोधन कराने, नाम ट्रांसफर कराने के लिए प्रयास करते थे। हालांकि, यह काम पहले भी बीएलओ के जिम्मे होता था, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता बीएलओ के सक्रिय सम्पर्क में रहते थे।

अब सारा मामला ऑनलाइन हो गया है, लेकिन बीएलओ की व्यवस्था बरकरार रखी गई है। आज भी कई वे बीएलओ को लम्बे समय से एक ही क्षेत्र में यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, क्षेत्र के सुधिजनों से सम्पर्क कर पूछ लेते हैं कि कोई बच्चा-बच्ची बड़े हो गए हों तो फॉर्म भरवाओ, कोई बाहर से यहां आया हो तो फॉर्म भरवाओ। और इस तरह से उनके क्षेत्र की वोटर लिस्ट अपडेट रहती है।

लेकिन, जब अर्जुन वोट नहीं दे सका तब लगा कि अभी इस व्यवस्था में और भी सक्रियता की आवश्यकता है। वोटर लिस्ट में नाम जुड़ाने की प्रक्रिया को भी स्कूल-कॉलेज की शिक्षण व्यवस्था का हिस्सा बनाना आवश्यक जान पड़ता है। अपने अर्जुन को न तो अपने कॉलेज में यह जानकारी मिल सकी कि वोटर लिस्ट में नाम कैसे जुड़वाया जाता है, न उसे उसके क्षेत्र के बीएलओ व्यवस्था की जानकारी है। और अचानक वोट से वंचित रह जाने वाला अर्जुन संभवतः अकेला नहीं होगा।

कुल मिलाकर लोकतंत्र के उत्सव को नीचे तक और भी मजबूत करने के लिए वोटर लिस्ट और आचार संहिता संबंधी जानकारी को 11वीं कक्षा से ही हर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना जरूरी है, चाहे विद्यार्थी विज्ञान का हो, वाणिज्य का हो या कला का। आखिर 11वीं का बच्चा जस्ट 18 की दहलीज पर पहुंच ही चुका होता है।