गिरिडीह, 13 सितंबर। कभी यह सड़क सलैया रेलवे स्टेशन जाने वालों के लिए जीवन-रेखा मानी जाती थी। लेकिन महीनों से जर्जर हालत ने इसे मौत का जाल बना दिया था। गड्ढों में फंसी गाड़ियां, घंटों का जाम और आए दिन होती दुर्घटनाओं ने स्थानीय लोगों की राह मुश्किल कर दी थी। शिकायतें हुईं, मांग उठी, नेता और अधिकारी आश्वासन देते रहे—पर समाधान कहीं नजर नहीं आया।
इन्हीं हालातों से रोज जूझ रहे पचंबा के बढ़ईटोला और हंड़ाडीह गांव के युवाओं ने आखिरकार ठान लिया कि अगर कोई मददगार नहीं बन रहा, तो वे खुद अपनी राह आसान करेंगे। पॉकेट मनी से पैसे जोड़े गए, ट्रैक्टर मंगवाया गया और फिर युवाओं ने हाथों में कुदारी और फावड़ा थाम लिया।
सुबह जब कुछ युवाओं ने काम शुरू किया तो राहगीर ठिठककर देखने लगे। धीरे-धीरे आसपास के और युवा भी जुटते गए। सड़क के गड्ढे भरते गए, कीचड़ हटता गया और थोड़ी-थोड़ी देर में तस्वीर बदलने लगी। राहगीरों ने राहत की सांस ली और तालियां बजाकर इन युवाओं का हौसला बढ़ाया। यहां तक कि सड़क पर फंसा एक ट्रक भी उनकी मेहनत से निकल पाया।
इस सामूहिक पहल का नेतृत्व किसी बड़े संगठन ने नहीं, बल्कि गांव के साधारण युवाओं—बबलू राणा, अमित राणा, मुकेश राणा और तुलसी राणा—ने किया। उनका कहना है, “अगर हम खुद आगे नहीं बढ़ेंगे, तो हमारी समस्याओं का समाधान कौन करेगा?”
अब यह सड़क भले ही स्थायी मरम्मत का इंतजार कर रही हो, लेकिन युवाओं के जज्बे ने पूरे इलाके को एक नई उम्मीद दी है।
