रास बिहारी
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल समेत कई विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव के मतदान के आखिरी और सातवें चरण की समाप्ति पर विभिन्न मीडिया संस्थानों के एग्जिट पोल्स में भारतीय जनता पार्टी के अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की प्रचंड जीत के अनुमान को मोदी मीडिया का पोल करार दिया है। इंडी एलायंस के नेताओं की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और अन्य नेताओं ने दावा किया वे सब मिलजुल कर 295 सीट से ज्यादा जीत रहे हैं। इस दावे को लगातार मीडिया पर दिखाया जाता रहा। साथ ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष की बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया कि एग्जिट पोल मोदी मीडिया का पोल है, को भी मीडिया में लगातार जगह मिलती रही।
सवाल यह है कि 4 जून को ये अनुमान नतीजों में बदल जाते हैं तो विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रिया क्या होगी? उसकी तैयारी भी पहले से ही कर ली गई है। हार का ठीकरा चुनाव आयोग और ईवीएम पर फूटना तय है। एग्जिट पोल सही साबित हो, यह पहले भी साबित हो चुका है। इस बार सभी एग्जिट पोल्स एनडीए की सरकार तीसरी बार बना रहे हैं। भाजपा के नेता एग्जिट पोल के बाद भी लगातार 400 पार का नारा लगा रहे हैं। सवाल एग्जिट पोल्स के सही या गलत साबित होने का नहीं है। कुछ एग्जिट पोल पहले भी गलत और सही साबित हुए हैं। एग्जिट पोल पर टिप्पणी करते हुए राहुल गांधी ने जिस तरह मीडिया पर टिप्पणी की है, वह उनकी बौखलाहट ही जाहिर करती है।
कांग्रेस ने तो एग्जिट पोल्स पर टीवी चैनलों पर बहस में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। बाद में उन्होंने यह फैसला बदल दिया। राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता शायद यह भूल गए कि 2023 के अंत में हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल कांग्रेस की सरकार बना रहे थे। इन चुनावों में भी कुछ एग्जिट पोल गलत और कुछ सही साबित हुए थे। जाहिर है आप एग्जिट पोल्स पर सवाल उठा सकते हैं पर मीडिया को मोदी की मीडिया बताना पूरी तरह गलत है। लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया ने कुछ ऐसी खबरों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया, जिससे भाजपा को परेशानी हुई।
खासतौर पर हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के आंदोलन का भारी असर बताया गया। इसी तरह गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला की टिप्पणी को लेकर राजपूतों में भारी नाराजगी जताई। यह अलग बात है कि भाजपा के एक-दो राजपूत नेताओं को टिकट न मिलने पर राजपूतों की नाराजगी को बार-बार दिखाया गया। टीवी चैनलों पर बहस के दौरान कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल के प्रवक्ता सही पक्ष रखने वाले पत्रकारों और राजनीतिक टिप्पणीकारों को मोदी समर्थक साबित करने पर तुले रहे।
कुछ चैनलों पर राजनीति से जुड़े लोगों को राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर बुलाने के कारण पत्रकारों पर सवाल उठने भी थे। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तो लगातार मीडिया ही निशाना साधते रहे। इसी तरह की तर्ज पर कांग्रेस के प्रवक्ता मीडिया को दोषी ठहराते रहे। टीवी चैनलों पर तय मुद्दे को नकारते हुए अपने मुद्दे पर बहस करने की जबरन सलाह देते रहे। ऐसा लग रहा था कि विपक्षी दलों के नेता मीडिया पर अपना एजेंडा थोपना चाहते थे। मीडिया के लोगों से जाति पूछी जाती रही। यह मीडिया की खुद की कमजोरी है कि बहुत बड़ा वर्ग चुप्पी साधे रहा। राहुल गांधी की टिप्पणी पर भी मीडिया जगत चुप्पी साधे बैठा है। केंद्र सरकार और भाजपा पर लगातार टिप्पणी करने वाले मीडिया संगठन इस मामले में एकदम चुप बैठे हैं।
एनडीए के अलावा सभी दलों ने एग्जिट पोल के अनुमानों को पूरी तरह नकार दिया है। अनुमान किसी के भी खिलाफ हों, नकारना ही था। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी नतीजों से एक दिन पहले एग्जिट पोल्स को नकार दिया। अब सवाल यही है कि विपक्षी दल नतीजों को लेकर क्या रवैया अपनाएंगे।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के अध्यक्ष हैं।)