
कोलकाता, 12 मार्च । तृणमूल कांग्रेस द्वारा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन न करने की घोषणा के बाद अब यह देखना होगा कि कांग्रेस वाम मोर्चे के साथ तालमेल करेगी या अकेले मैदान में उतरेगी।
पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सूत्रों के अनुसार, पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर मतभेद हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि 2026 के विधानसभा चुनाव में वाम मोर्चे से गठबंधन जारी रखने के विरोध में तर्क दिया जा रहा है कि कांग्रेस पहले 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुकी है। उनका मानना है कि तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस को लगातार कमजोर किया और उसके निर्वाचित प्रतिनिधियों को तोड़कर अपने खेमे में शामिल किया।
इस धड़े का यह भी मानना है कि 2016 से शुरू हुआ वाम मोर्चे के साथ सीट बंटवारे का समझौता 2024 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहा, जिससे कांग्रेस की राज्य में संगठनात्मक मजबूती प्रभावित हुई और वह पूरी तरह से वाम मोर्चे पर निर्भर हो गई।
हालांकि, पार्टी के भीतर एक दूसरा मत भी है, जो मानता है कि वर्तमान स्थिति में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़कर पहले ही हार स्वीकार करने जैसा कदम उठाएगी। अब जब ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी दोनों ने 2026 के चुनाव में कांग्रेस से किसी भी तरह के गठबंधन की संभावना को खारिज कर दिया है, तो कांग्रेस के पास वाम मोर्चे के साथ सीट बंटवारे का ही विकल्प बचता है।
इस बीच, कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का मानना है कि इस मुद्दे पर राज्य इकाई पर कोई फैसला थोपने के बजाय जमीनी कार्यकर्ताओं की राय ली जानी चाहिए। सूत्रों के अनुसार, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का एक प्रतिनिधिमंडल जून या जुलाई में पश्चिम बंगाल का दौरा कर सकता है, जिसमें पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल हो सकते हैं। यह प्रतिनिधिमंडल राज्य नेतृत्व और जमीनी कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद अंतिम निर्णय लेगा।
वहीं, सीट बंटवारे को लेकर वाम दलों के भीतर भी जटिलताएं हैं। अप्रैल में तमिलनाडु के मदुरै में होने वाले 24वें पार्टी कांग्रेस के लिए तैयार किए गए मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव में माकपा की केंद्रीय समिति ने स्वतंत्र राजनीतिक दिशा पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की बात कही है।
मसौदा प्रस्ताव में कहा गया है कि पार्टी को स्वतंत्र राजनीतिक अभियान और जन संपर्क पर अधिक ध्यान देना चाहिए। चुनावी समझौतों या गठबंधनों के नाम पर हमारी स्वतंत्र पहचान या गतिविधियों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
इस प्रस्ताव में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा का भी जिक्र किया गया है, जहां पिछले चुनावों में वाम मोर्चे ने कांग्रेस के साथ सीटें साझा की थी। प्रस्ताव के अनुसार, “पश्चिम बंगाल में पार्टी और वाम मोर्चे की ताकत बढ़ाने के लिए संगठन का विस्तार और पुनर्निर्माण आवश्यक है। पार्टी को राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष में भाजपा पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जबकि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों का विरोध करना जारी रखना होगा।”