नई दिल्ली में आठवें जल सप्ताह का समापन

उदयपुर/नई दिल्ली, 24 सितम्बर। जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘सहयोग व साझेदारी से समावेशी जल विकास व प्रबंधन’ थीम पर आधारित आठवां जल सप्ताह वॉश सेमिनार के साथ गत शनिवार को पूर्ण हुआ। इस अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया और जल सर्वोदय पर जोर दिया। वहीं समापन में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि सामूहिक विचार विमर्श तथा सहयोगात्मक अभिनव दृष्टिकोण में  जल मुद्दों का समाधान निहित है।

इस जल सम्मेलन में ‘जल समृद्ध विश्व, पारिस्थितिकीय संतुलन तथा मानव कल्याण का हरित दर्शन व समन्वित कार्य’ विषयक विशेष सत्र में विद्या भवन पॉलिटेक्निक के प्राचार्य डॉ अनिल मेहता ने पश्चिमी राजस्थान का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि जलस्रोतों के प्रति श्रद्धा, जल की बूंद-बूंद को बचाने की संस्कृति तथा जल दक्षता पुनर्स्थापित हो जाए तो वॉटर स्केरसिटी को वॉटर सफीसिइंसी में बदला जा सकता है। जलीय अर्थव्यवस्था, ब्लू इकोनॉमी के स्थान पर जलीय पारिस्थितिकी, ब्लू इकोलोजी पर जल के विमर्श को ले जाना होगा, ताकि पारिस्थितकीय संतुलन व सर्व मानव कल्याण को सुनिश्चित किया जा सके।

पर्यावरण संरक्षण गतिविधि,  इंडियन सोशल रिपॉन्सिबिलिटी नेटवर्क,  दीनदयाल रिसर्च इंस्टीट्यूट, जलाधिकार फाउंडेशन के साझे में भारत मंडपम, दिल्ली में आयोजित इस सत्र में मेहता ने कहा कि विश्व को जल समृद्ध बनाने के लिए मौजूदा जल विमर्श में जल के सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, पारिस्थितिकीय पहलुओं का समावेश जरूरी है। सम्मान, संवाद, सदुपयोग, सहयोग, समन्वय, स्वावलंबन, समावेशिता जैसे सकारात्मक माध्यमों से ही  जल समृद्ध विश्व बनेगा। मेहता ने कहा कि भारत में जल प्रबंधन, स्रोत विकास और संरक्षण की एक समृद्ध विरासत  रही है। इसका आधार हमारा आध्यात्म व विज्ञान से परिपूर्ण जल दृष्टिकोण है जहां जल को एक संसाधन नहीं वरन जीवन साधन, पवित्र ईश्वरीय तत्व माना जाता है।

मेहता ने कहा कि भारत में व्यक्ति की पहचान जिस नदी क्षेत्र या जिस कुएं, बावड़ी, तालाब क्षेत्र में वह रहता था, उससे होती थी। हमने इसे विस्मृत कर दिया और इसी कारण समाज का जल स्रोतों से संबंध विच्छेद हो गया। मेहता ने स्वयं का परिचय बेड़च नदी तीर निवासी के रूप में देते हुए कहा कि प्रेम, परमार्थ, परिष्कार को भावना तथा जल स्रोतों के प्रति श्रद्धा भाव की स्थापना से पूरे विश्व को जल समृद्ध बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जल एक उत्पाद नहीं है तथा जल स्रोत केवल सरंचना मात्र नहीं हैं। जल व जल स्रोतों को हाइड्रोलॉजी, हाइड्रोलिक, हाइड्रो मेटरिलिटी तक ही सीमित नहीं कर, हाइड्रोकल्चरीटी, हाइड्रोस्प्रिचुअलिटी, हाइड्रोमॉरलिटी, हाइड्रोइकॉसिटी, हाइड्रोसीरिनिटी, हाइड्रोसोशलिटी, हाइड्रोसीरिनिटी जैसे विविध पक्षों तक विस्तारित करना चाहिए।

सत्र की अध्यक्षता परमार्थ निकेतन प्रमुख स्वामी चिदानंद सरस्वती ने की। संस्कृति फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अमरनाथ रेड्डी, कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रो. कर्स्टन, पत्रकार शिप्रा माथुर, नर्मदा समग्र के कार्तिक सप्रे, अपना संस्थान के विनोद मेलाना, डीआरआई के अतुल जैन ने जल संरक्षण की पारंपरिक विधाओं, सामुदायिक सहभागिता, समाज की वैज्ञानिक समझ इत्यादि पर विचार रखे। गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. चिन्मय पंड्या ने पंचमहाभूत आधारित पर्यावरण दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। नदी सुधार पर विशेष कार्य कर रहे संत सीचेवाल विशिष्ट अतिथि थे। संयोजन आईएसआरएन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संतोष गुप्ता ने किया। पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक गोपाल आर्य, पद्मश्री उमाशंकर पांडेय सहित जल संसाधन मंत्रालय से जुड़े अधिकारी तथा देश विदेश से आए प्रतिभागी इस सत्र में उपस्थित रहे। जल सप्ताह के एक अन्य सत्र में विद्या भवन डानीडा शोध योजना की डॉ. योगिता दशोरा ने आयड़ नदी बेसिन पर प्रस्तुतीकरण किया।