
कोलकाता, 10 जुलाई । मेदिनीपुर स्थित विद्यासागर विश्वविद्यालय में इतिहास की परीक्षा के प्रश्नपत्र में स्वतंत्रता सेनानियों को ‘आतंकवादी’ कहे जाने को लेकर जबरदस्त राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा हो गया है। परीक्षा में पूछे गए एक सवाल ने न सिर्फ विश्वविद्यालय की साख पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था और ऐतिहासिक दृष्टिकोण पर भी तीखी बहस छेड़ दी है।
विवादित प्रश्न में कहा गया— “मेदिनीपुर के तीन ऐसे जिला मजिस्ट्रेटों के नाम बताइए जिन्हें आतंकवादियों ने मारा था।” यह सवाल सीधे तौर पर उन क्रांतिकारियों को आतंकवादी करार देता है जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया था। विद्यासागर विश्वविद्यालय का यह प्रश्न पश्चिम बंगाल के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े ऐतिहासिक गौरव पर आघात के रूप में देखा जा रहा है।
सवाल के सार्वजनिक होते ही नागरिक समाज और शिक्षाविदों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। कई लोगों ने प्रश्न तैयार करने वाले शिक्षक की वैचारिक प्रतिबद्धता और योग्यता पर सवाल उठाए हैं। भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु को पत्र लिखकर जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान कर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
हालांकि, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार जे.के. नंदी ने इसे “टाइपिंग मिस्टेक” बताते हुए गलती मानी है। उन्होंने कहा कि इस घटना की जांच के लिए आपात बैठक बुलाई गई है और भविष्य में ऐसी चूक न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा।
मामले में माकपा ने सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और केंद्र की भाजपा दोनों पर इतिहास के विकृतिकरण का आरोप लगाया है। पार्टी का कहना है कि यह घटना उसी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह रही कि तृणमूल कांग्रेस की जिला इकाई ने भी इस गलती को ‘अक्षम्य’ करार दिया है और कहा है कि स्वतंत्रता सेनानियों को आतंकवादी कहना बर्दाश्त के काबिल नहीं।
यह विवाद ऐसे समय सामने आया है जब बंगाल में शिक्षा व्यवस्था की साख को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। विद्यासागर जैसे महापुरुष के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय में ऐसी ऐतिहासिक गलती, राज्य में शिक्षा की दिशा और निगरानी व्यवस्था पर गहरे सवाल खड़े करती है।