वीर सावरकर की पुण्यतिथि पर इतिहास संकलन समिति की संगोष्ठी
उदयपुर शहर में वीर सावरकर की प्रतिमा के लिए समिति लिखेगी पत्र
उदयपुर, 27 फरवरी। वीर सावरकर के हिन्दुत्व की परिभाषा सहज और सरल है, उनकी परिभाषा में हर वह व्यक्ति हिन्दू है जो भारतभूमि को अपनी मातृभूमि, अपने पूर्वजों की भूमि की तरह पूजे। यदि ऐसा नहीं है तो उसकी निष्ठा इस देश, इस धरा के प्रति नहीं है, ऐसे में वह इस देश के प्रति भी निष्ठावान नहीं माना जा सकता है।
यह बात इतिहास संकलन समिति के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने वीर सावरकर की पुण्य स्मृति में ‘वीर सावरकर का राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही। हिरण मगरी सेक्टर-4 स्थित विश्व संवाद केन्द्र में सोमवार देर शाम आयोजित इस संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोहरा ने कहा कि वीर सावरकर का राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व स्पष्ट था। वे तुष्टीकरण के बजाय राष्ट्रीयकरण के पक्षधर थे। सावरकर चाहते थे कि तुष्टीकरण ही सब समस्याओं की जड़ है। वे मानते थे कि तुष्टीकरण को छोड़ इस देश में रहने वाले सभी लोगों को इस देश के प्रति निष्ठा रखनी होगी, चाहे वे किसी भी धर्म पंथ सम्प्रदाय को मानने वाले हों।
बोहरा ने स्वातंत्र्य वीर सावरकर की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं कि वीर सावरकर सहित उनके तीनों भाई स्वतंत्रता सेनानी बने और आठ गुना आठ की कालकोठरी में आजीवन कारावास झेला। उन्होंने कहा कि तुच्छ राजनीति करने वाले कुछ मुट्ठी भर लोगों द्वारा उनके त्याग को नकार कर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार है, क्योंकि हम अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण इस बात का विरोध नहीं करते। देश की स्वतंत्रता के लिए दो आजन्म कालापानी की सजा भुगतने वाले वीर सावरकर ने मारणान्तिक कष्ट झेलते हुए अपना जीवन खपा दिया। उन्होंने हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया। उन्होंने वैचारिक रूप से राष्ट्रीयकरण की भावना पर हमेशा जोर दिया।
वीर सावरकर की प्रतिमा के लिए पत्र लिखें – विधायक
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन ने समिति से शहर में वीर सावरकर की प्रतिमा लगाने के लिए नगर निगम को पत्र लिखने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर के योगदान को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला जिसके लिए हमें प्रयास करने होंगे।
राष्ट्रवाद का बोध जाग्रत करना जरूरी – सारंगदेवोत
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत ने कहा कि देश के हर नागरिक में राष्ट्रवाद का बोध जाग्रत करना जरूरी है। इसके लिए वीर सावरकर जैसे महापुरुषों के विचारों का सटीक प्रस्तुतीकरण करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वीर सावरकर की फादरलैंड और वरशिपलैंड की परिभाषा को समझ लिया जाए तो उनके राष्ट्रवाद की अवधारणा सहज रूप से समझी जा सकती है। सावरकर का यही कहना था कि हम हिन्दुस्तान में रहते हैं तो सबसे पहले हिन्दुस्तान की बात करना और मानना चाहिए।
अतिथियों को साहित्य भेंट
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित इतिहास संकलन समिति के चित्तौड़ प्रांत अध्यक्ष मोहन श्रीमाली, प्रांत महासचिव डॉ. विवेक भटनागर, प्रांत सचिव डॉ. मनीष श्रीमाली ने मुख्य अतिथि विधायक ताराचंद जैन तथा कार्यक्रम अध्यक्ष कुलपति प्रो. एसएस सारंगदेवोत को समिति का साहित्य भेंट किया। इससे पूर्व, इतिहास संकलन समिति के जिलाध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह खरकवाल, उपाध्यक्ष मदन मोहन टांक, जिला प्रचार प्रमुख मंगल कुमार जैन ने अतिथियों का स्वागत किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन समिति की महानगर इकाई के अध्यक्ष डॉ. महामाया प्रसाद चौबीसा ने किया। उन्होंने कहा कि समिति की ओर से शीघ्र ही शहर में वीर सावरकर की प्रतिमा लगाए जाने के लिए आग्रह पत्र लिखा जाएगा।