वाराणसी, 26 अक्टूबर। रामनगर किले के दक्षिणी छोर पर विराजमान श्यामवर्ण हनुमान जी की प्रतिमा का दर्शन शुक्रवार को होगा। वर्ष भर में सिर्फ एक दिन के लिए खुलने वाले दरबार में दर्शन पूजन को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह है।

यह मंदिर रामनगर की विश्व प्रसिद्द रामलीला राजगद्दी की झांकी और भोर की आरती वाले दिन ही आम जनों के लिए कुछ ही घंटों के लिए खुलता है। हनुमान जी की यह अति दुर्लभ प्रतिमा पूरे विश्व में अपने तरह की एक अकेली प्रतिमा है। पूरे विश्व में अनूठी हनुमान जी की प्रतिमा का संबंध त्रेतायुग में श्रीराम रावण युद्धकाल से माना जाता है। काले पत्थर की यह प्रतिमा हनुमान के प्रतिरूप माने जाने वाले वानर की अवस्था में स्थापित है। किसी भी तरफ से इसे देखने पर आपको लगेगा मानो यह प्रतिमा आपकी ही ओर देख रही है।

इस वानर रूपी काले हनुमान जी की प्रतिमा की सबसे ख़ास बात यह है कि इस प्रतिमा पर मानव शरीर पर पाये जाने वाले बाल की तरह रोंये भी हैं। मान्यता है कि वर्षों पहले रामनगर के राजा को स्वप्न आया था कि किले के पिछली तरफ एक वानर रूपी हनुमान जी की प्रतिमा है, जिसकी स्थापना वहीं करा दी जाए। दूसरे दिन तत्कालीन काशीनरेश ने खुदाई कराई और किले की पिछली तरफ गंगा किनारे यह प्रतिमा मिली और उसकी स्थापना वहीं करा दी गई। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।

काशी में मान्यता है कि दक्षिणमुखी काले हनुमान जी का संबंध त्रेतायुग में श्रीराम-रावण युद्धकाल से है। रामेश्वरम् में लंका जाने के लिए जब भगवान राम समुद्र से रास्ता मांग रहे थे, तब उस समय समुद्र ने पहले उन्हें रास्ता नहीं दिया। इसपर कुपित होकर श्रीराम ने बाण से समुद्र को सुखा देने की चेतावनी दी। इसपर भयभीत होकर प्रकट हुए समुद्र ने श्रीराम से माफी मांगी और अनुनय-विनय किया। इसके बाद श्रीराम ने प्रत्‍यंचा पर चढ़ चुके उस बाण को पश्चिम दिशा की ओर छोड़ दिया। इसी समय बाण के तेज से धरती वासियों पर कोई आफत न आए इसके लिए हनुमान जी घुटने के बल बैठ गए। ताकि धरती को डोलने से रोका जा सके। वहीं, श्रीराम के बाण के तेज के कारण हनुमानजी का पूरा देह झुलस गया। इस कारण उनका रंग काला पड़ गया।