लखनऊ, 09 अप्रैल । उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक समय वो भी था जब कई संसदीय सीटों पर वामदलों का प्रभाव था। इनमें औद्योगिक नगरी कानपुर, धार्मिक नगरी अयोध्या और वाराणसी समेत बुंदेलखंड और पश्चिम उत्तर प्रदेश की सीटें शामिल थी। 1991 के आम चुनाव के बाद से उत्‍तरप्रदेश में वामदलों का सांसद नहीं बन सका। वामदल उप्र में इतने कमजोर है कि सभी सीटों पर चुनाव तक नहीं लड़ पाते हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की स्थापना 26 दिसम्बर 1925 को कानपुर में हुई थी।  इसकी स्थापना एम एन राय ने की थी। हालांकि वामपंथी आन्दोलनों में भाकपा की स्थापना की तिथि को लेकर विवाद है।

पहले आम चुनाव में प्रदर्शन

1952 में देश में हुए पहले आम चुनाव उप्र में भाकपा के दो प्रत्याशी झांसी और आजमगढ़ सीट से मैदान में उतरे। एक प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई। भाकपा प्रत्याशियों को 59699 (0.35 फीसदी) वोट हासिल हुए।

दूसरे आम चुनाव में खाता खुला

1957 के दूसरे आम चुनाव में उप्र में पहली बार वामदलों ने जीत का स्वाद चखा। रसड़ा से भाकपा प्रत्याशी सरजू पांडे जीते। सरजू पांडे ने कांग्रेस के डॉ. शौकतुल्लाह शाह अंसारी को हराया था। इस चुनाव में भाकपा ने मेरठ, झांसी, रसड़ा, बलिया, घोसी, सलेमपुर, फैजाबाद और लखनऊ से प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। भाकपा के खाते में कुल 383509 (1.67 फीसदी) वोट आए।

तीसरे आम चुनाव में दो सीटें जीती

1962 के आम चुनाव में भाकपा ने 18 प्रत्याशी मैदान में उतारे। घोसी और रसड़ा पर उसे जीत मिली। भाकपा को 3.63 फीसदी वोट हासिल हुए।

1967 के चुनाव में 6 सीटें जीती

चौथे आम चुनाव में भाकपा के 17 प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा। वहीं साठ के दशक में पैदा हुई कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सवादी (माकपा) ने भी 6 प्रत्याशी मैदान में उतारे। 5 सीटों पर भाकपा और एक सीट पर माकपा ने जीत दर्ज की। यह भाकपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इस चुनाव में भाकपा को 3.62 फीसदी वोट मिले। भाकपा ने अमरोहा, घोसी, गाजीपुर, बांदा और मुजफ्फरनगर सीटे जीती थी। वहीं माकपा ने वारणसी सीट पर कब्जा किया था। माकपा के खाते में 1.19 फीसदी वोट आए।

1971 में घट गई सीटें

1971 के चुनाव में अमरोहा, घोसी, गाजीपुर और मुजफ्फनगर चार सीटों पर भाकपा के उम्मीदवार जीते और उसे 3.70 फीसदी वोट मिले। लेकिन यह पार्टी का अन्तिम श्रेष्ठ प्रदर्शन था। उस चुनाव में भाकपा ने 9 और माकपा ने 3 प्रत्याशी उतारे थे। भाकपा का इस चुनाव में खाता नहीं खुला। उसे 0.19 फीसदी वोट मिलें

1977 में खाता नहीं खुला

1977 के आम चुनाव में में भाकपा ने 13 और माकपा के 2 प्रत्याशी मैदान थे। 15 में से 14 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। इस चुनाव में वाम दलों का खाता नहीं खुला। भाकपा का वोट प्रतिशत 1.10 और माकपा का 0.10 फीसदी रहा।

1980 में भाकपा प्रत्याशी झारखंडे राय ने घोसी सीट जीती। इस चुनाव में भाकपा ने 5 और माकपा ने एक प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। भाकपा का वोट 1.63 फीसदी रहा। 1984 के आम चुनाव में भाकपा ने 14 और फारवर्ड ब्लाक ने एक प्रत्याशी चुनाव में उतारा। 12 की जमानत जब्त हुई। भाकपा को 1.69 फीसदी वोट मिले।

1989 में थोड़ी हालत सुधरी

1989 के आम चुनाव में वामदलों ने तीन सीटें जीती। भाकपा ने 9, माकपा ने 1 और फारवर्ड ब्लाक ने तीन प्रत्याशी उतारे थे। भाकपा ने फैजाबाद और बांदा दो सीटों पर कब्जा किया। वहीं माकपा कानुपर सीट जीतने में सफल रही। भाकपा को 1.36 और माकपा को 0.45 फीसदी वोट मिले।

1991 के चुनाव में गाजीपुर से भाकपा के बिश्वनाथ शास्त्री जीते। उप्र में वाम दलों ने इसके बाद कोई चुनाव नहीं जीता। इस चुनाव में भाकपा, माकपा और फारवर्ड ब्लाक ने कुल 11 उम्मीदवार खड़े किये। इनमें से 6 की जमानत जब्त हुई थी। भाकपा को 1.04 फीसदी वोट हासिल हुए। 1991 के बाद साल 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में वामदलों का खाता नहीं खुला। इन चुनावों में उनका वोट भी गिरा। 2009 के आम चुनाव में वामदलों ने उप्र में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे।

2014 में मोदी की आंधी में उड़ गया विपक्ष

2014 के आम चुनाव में मोदी लहर में विपक्ष हवा में उड़ गया। इस चुनाव में भाकपा, माकपा और भाकपा (एमएल-एल) ने कुल 25 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। भाकपा के खाते में 0.16 और माकपा को 0.01 फीसदी वोट आए।

2019 के चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन

17वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में भाकपा, माकपा और भाकपा (एमएल-एल) ने कुल 16 प्रत्याशी मैदान में उतारे। इस चुनाव में वाम दलों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। भाकपा को कुल 0.14 और माकपा को 0.03 फीसदी वोट ही हासिल हो सके।