उदयपुर में रागों के रंग, गुरु‑शिष्य के संग
-संगीत शिष्यों से साधना की दक्षिणा ली गुरुजी ने

कौशल मूंदड़ा-
उदयपुर, 11 जुलाई। उदयपुर की गुलाबी भोर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जब सूरज की प्रथम किरणें पिछोला झील की नर्म लहरों पर संगीत के अलिखित अलाप गुनगुनाने लगीं, तभी शहर के प्रतिष्ठित संगीताचार्य डॉ. सदाशिव गौतम के शांत, सुवासित सान्निध्य में रियाज़ की घंटियां बज उठीं। अवसर था गुरु पूर्णिमा का जहां परम्परा के व्यावहारिक अर्थों से आगे निकल, इस बार गुरुजी ने अपने शिष्यों से वस्तु नहीं, स्वर की दक्षिणा मांगी और वह भी उनकी पसंद का, उनकी आत्मा में गूंथी हुई स्वर‑साधना का निचोड़। यह न्योता किसी औपचारिक वार्षिक प्रस्तुति से अलग, आत्मीयता और समर्पण का अनोखा पर्व था।


प्रख्यात संगीताचार्य पद्मभूषण पं. राजन-साजन मिश्रा व पं. महेशचंद्र शर्मा के शिष्य डॉ. सदाशिव गौतम ने हारमोनियम स्वयं संभाला। भक्तिभाव से चमकती आंखें और सधी हुई अंगुलियों से फूटते स्वर मानो तालकटोरा के नीलकमलों पर टपकती पावन ओस की बूंदें। गुरु‑आसन के ठीक सामने, नवोदितों से लेकर बरसों से साधना कर रहे शिष्यों की कतार थी। मां सरस्वती की तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ ‘हे मेरे गुरुदेव करुणा सिंधु करुणा कीजिये’की स्वर‑तरंगों से हुआ जिसने वातावरण को स्नेहिल ऊर्जा से भर दिया। इसके पश्चात् राग वैरागी, फिर राग यमन, यमनी बिलावल, तिलक कामोद, राग हंसध्वनि, शुद्ध सारंग, मल्हार, भीमपलासी, हवेली संगीत आदि की प्रस्तुतियां हुईं। तबला, तानपुरा के साथ सधे सुरों ने सभी को भावविभोर कर दिया। कनिष्ठ वर्ग में एकांश, नरेश चौबीसा, कपिल डांगी, किन्तु शर्मा, विशाल शर्मा, डोरिस शर्मा, कविश, रजत, धैर्य, खुशी, भार्गवी, शिखा, विशाल ने प्रस्तुतियां दीं, वहीं वरिष्ठ वर्ग में अनुज, विशाल, एसएन शर्मा, नितिन साहू, मारिषा दीक्षित, किरण, प्राची, निधि, व्योम शर्मा, मनीष वैष्णव, कपिल राणा, संजय, अंकित चौहान, तथागत ने प्रस्तुतियां दीं। तबले पर उदयपुर के संदीप व चित्तौड़ के विक्रांत द्विवेदी ने संगत दी। एक-एक शिष्य की प्रस्तुति को करतल ध्वनि से सराहना मिली। इस सुरमई कार्यक्रम का कुशल संचालन किरण जोशी ने किया।
कार्यक्रम कोई प्रतियोगिता नहीं, प्रेम‑पूर्ण साधना समर्पण था, जहां शिष्यों के सुरमई अर्घ्य को स्वीकार कर संगीत गुरु गौतम ने कहा, साधना वह दीप है, जो संग‑संग जलता है, मेरी ज्योति तुममें है, तुम्हारा उजास मुझमें। सांध्यवेला तक चले चले इस सुर‑सिंचन में सभी का मन ऐसा रमा कि संगीत‑रसिक नवोदितों को और सुनने की लालसा को मन में लेकर घर लौटे।