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‘रूहे-ग़ज़ल’ में गूँज उठीं गज़लें
कोलकाता, 3 मार्च। स्थानीय संस्था ‘ग़ज़ल मंच’ की ओर से संस्थापक स्व. ख़ुर्शीद सामित की याद में ग़ज़ल गायकी की एक ऐसी शाम आयोजित की गई,जिसे श्रोता एक लम्बे समय तक याद करेंगे।यह आयोजन शनिवार,1 मार्च 2025 को स्थानीय रोटरी सदन के सभागार में किया गया।इसमें नगर की मशहूर गायिका स्वर समर्पिता मारुती मोहता ने 1933 से 1993 बीच गाई हुईं चुनिंदा ग़ज़लों को लाजवाब अंदाज़ में पेश किया।
आरम्भ में आज़ादी के पहले के मशहूर गायक-गायिकाओं में कुन्दनलाल सहगल की गाई हुई ‘लाई हयात आये कज़ा ले चली चले’,
अख़्तरी बाई की ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे’,मास्टर मदन की ‘हैरत से तक रहा है जहाने-वफ़ा मुझे’ और तलत महमूद की ‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी'(नज़्म) उदाहरण के रूप में पेश की गईं। उसके पश्चात् तो ग़ज़लों का सैलाब-सा आ गया -ग़ालिब की ‘नुक्ताचीं है ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने’,शकील की ‘ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’,साहिर की ‘तुम अपना रंज़ो-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो’,प्रियदर्शी की ‘मेरे आँसुओं पे न मुस्कुरा कई ख्वाब तो जो मचल गए’,नूह की ‘आप जिनके क़रीब होते हैं’,मख़्दूम की ‘आपकी याद आती रही रात भर’.निदा की ‘कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता’,मीर की ‘दिखाई दिए यूँ के बेख़ुद किया’,अदम की ‘हँस के बोला करो बुलाया करो’ राही की ‘अजनबी शहर के अजनबी रास्ते मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ‘,फ़िराक़ की ‘बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं’ ,नूर की ‘ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं’ और मजरूह की ‘हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयाँ होंगे’ -एक से बढ़कर एक ग़ज़ल दिलो-दिमाग पर हावी होती गयी।
प्रमोद शाह की अद्भुत स्क्रिप्ट और कमेंट्री ने प्रोग्राम में प्राण फूँक दिए।उन्होंने ग़ज़ल के इतिहास, विकास, बुनावट, पेश की गयीं ग़ज़लों के कठिन शब्दों और भावों को समझाया। स्रोताओं उनके सञ्चालन और मारुती की गायकी दोनों का भरपूर आनंद लिया।
कार्यक्रम का आरम्भ और धन्यवाद ज्ञापन किया संयोजक राजेंद्र खंडेलवाल ने किया और मारुती मोहता को पुष्प भेंट कर स्वागत किया संस्था के अध्यक्ष अजय सिंह ने।