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कोलकाता, 14 फरवरी । पश्चिम बंगाल में राजनीतिक ध्रुवीकरण (बाइनरी पॉलिटिक्स) का सबसे बड़ा फायदा तृणमूल कांग्रेस को मिला है। यह निष्कर्ष मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की आंतरिक रिपोर्ट में सामने आया है। इस रिपोर्ट में पार्टी के चुनावी रणनीति की समीक्षा करते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने कहा है कि सभी स्तरों पर कार्यकर्ताओं को भारतीय जनता पार्टी का “राजनीतिक और वैचारिक” रूप से मुकाबला करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
माकपा की आंतरिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी पिछले एक दशक से तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों से लड़ रही है। इस दौरान भाजपा का राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर विरोध करना जरूरी है क्योंकि बड़ी संख्या में धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाले लोग तृणमूल को भाजपा के खिलाफ प्रभावी विकल्प मानते हैं।
हालांकि, पश्चिम बंगाल में पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस को सबसे बड़ा लाभार्थी बताना एक “सरल सूत्रीकरण” है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि निश्चित रूप से राज्य में एक वर्ग तृणमूल को भाजपा के खिलाफ प्रभावी मानता है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता भी हैं जो तृणमूल विरोध में भाजपा को विकल्प मान रहे हैं। ऐसे में पार्टी को राज्य में दोनों दलों का संतुलित विरोध करने की रणनीति अपनानी चाहिए।
बंगाल की राजनीति में ध्रुवीकरण की राजनीति का यह ट्रेंड 2019 के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट हुआ था, जब भाजपा ने 2014 के दो सीटों की तुलना में 18 सीटें जीतकर तृणमूल के सामने एक मजबूत विपक्ष के रूप में जगह बना ली थी।
इसके बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में यही ध्रुवीकरण तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में चला गया और पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड जारी रहा और तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी लाभार्थी बनी। इन तीनों चुनावों में माकपा के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा पूरी तरह हाशिए पर चला गया और एक भी सीट जीतने में नाकाम रहा।
माकपा ने इस महीने अपनी आगामी 24वें पार्टी कांग्रेस के लिए मसौदा राजनीतिक प्रस्ताव जारी किया है, जो अप्रैल में तमिलनाडु के मदुरै में आयोजित किया जाएगा। इसमें पार्टी नेतृत्व ने भविष्य में “स्वतंत्र राजनीतिक लाइन” पर जोर देने की बात कही है, न कि सिर्फ चुनावी समझौतों पर निर्भर रहने की।
प्रस्ताव में कहा गया है, “पार्टी को स्वतंत्र राजनीतिक अभियान और जन आंदोलन पर अधिक ध्यान देना चाहिए। चुनावी समझौते या गठबंधन के नाम पर हमारी स्वतंत्र पहचान या गतिविधियों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।”
बंगाल और त्रिपुरा का जिक्र करते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि इन राज्यों में पार्टी को पुनर्निर्माण और विस्तार की जरूरत है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में ग्रामीण गरीबों के बीच काम करने और उन्हें संगठित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। पार्टी को भाजपा के खिलाफ राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष पर जोर देना होगा, साथ ही तृणमूल और भाजपा दोनों का विरोध जारी रखना होगा।