अब यह जहाज गुजरात से ओमान तक प्राचीन व्यापार मार्ग पर महासागरीय यात्रा पर निकलेगा

नई दिल्ली, 21 मई । भारतीय नौसेना ने बुधवार को कर्नाटक के कारवार नौसेना बेस में ​पारंपरिक रूप से निर्मित प्राचीन सिले हुए जहाज को ‘कौंडिन्य’ को अपने समुद्री बेड़े में शामिल किया। यह सिला हुआ जहाज 5वीं शताब्दी के जहाज का एक नया रूप है, जो अजंता की गुफाओं की एक पेंटिंग से प्रेरित है। संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने मुख्य अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की, जो भारत की समृद्ध जहाज निर्माण विरासत का जश्न मनाने वाली एक असाधारण परियोजना के समापन का प्रतीक है।

आईएनएसवी ‘कौंडिन्य’ एक सिला हुआ पाल वाला जहाज है, जिसके लिए भारतीय नौसेना और मेसर्स होदी इनोवेशन के बीच जुलाई, 2023 में हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद संस्कृति मंत्रालय से वित्त पोषण मिला था। सिले हुए जहाज की कील बिछाने का काम 12 सितंबर, 23 को शुरू हुआ था। सिले हुए जहाज का निर्माण पूरी तरह से पारंपरिक तरीकों और कच्चे माल का उपयोग करके केरल के कारीगरों ने किया है। मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन के नेतृत्व में जहाज के लिए हजारों हाथ से सिले हुए जोड़ बनाए गए हैं। कई महीनों तक टीम ने कॉयर रस्सी, नारियल फाइबर और प्राकृतिक राल का उपयोग करके जहाज के पतवार पर लकड़ी के तख्तों को सावधानीपूर्वक सिल दिया। इस जहाज को फरवरी, 2025 में मेसर्स होडी शिपयार्ड, गोवा में लॉन्च किया गया था।

भारतीय नौसेना ने इस परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख की है, जिसमें मेसर्स होदी इनोवेशन और पारंपरिक कारीगरों के सहयोग से अवधारणा विकास, डिजाइन, तकनीकी सत्यापन और निर्माण शामिल है। इस दौरान तमाम तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि 5वीं शताब्दी के जहाज़ों का ब्लूप्रिंट न होने के कारण प्रतीकात्मक स्रोतों से डिजाइन का अनुमान लगाया जाना था। नौसेना ने जहाज निर्माता के साथ मिलकर पतवार के आकार और पारंपरिक रिगिंग को फिर से बनाया। सिले हुए जहाज आधुनिक समय के जहाजों से पूरी तरह से अलग हैं। मॉडल परीक्षण करने के लिए आईआईटी मद्रास के महासागर इंजीनियरिंग विभाग ने सहयोग किया है।

इस पोत में सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण कई विशेषताएं हैं। इसके पालों पर गंडभेरुंड और सूर्य की आकृतियां दिखाई देती हैं। गंडभेरुंड एक दो सिर वाला दैवीय पक्षी है जो पौराणिक ग्रंथों में पाया जाता है। एक प्रतीकात्मक हड़प्पा शैली का पत्थर लंगर के डेक को सुशोभित करके प्राचीन भारत की समृद्ध समुद्री परंपराओं को दर्शाता है। भारतीय नौसेना नौकायन पोत (आईएनएसवी) के रूप में शामिल किया गया कौंडिन्य कारवार में स्थित होगा। अब यह जहाज अपने अगले ऐतिहासिक चरण में प्रवेश करेगा, जिसमें गुजरात से ओमान तक प्राचीन व्यापार मार्ग के साथ एक पार-महासागरीय यात्रा की तैयारी शामिल है, जो इस वर्ष के अंत में निर्धारित है।———-