कोलकाता, 19 मई  । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत करने के लिए गठित बहुदलीय प्रतिनिधिमंडलों से खुद को अलग कर लिया है। केंद्र सरकार को इसकी औपचारिक सूचना दे दी गई है।

यह निर्णय हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सामने आया है। केंद्र सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों सहित 32 देशों और यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रुसेल्स में सात प्रतिनिधिमंडल भेजने का फैसला किया है, जिनका उद्देश्य भारत की आतंकवाद-विरोधी नीति को वैश्विक समर्थन दिलाना है।

टीएमसी ने अपने लोकसभा सदस्य यूसुफ पठान, जो इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनाए गए थे, को विदेश दौरे में हिस्सा लेने से मना कर दिया है। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने पहले ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर प्रतिनिधिमंडल से नाम वापस ले लिया था।

टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “विदेश नीति केंद्र सरकार के अधीन है, इसलिए उसे ही इसकी पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हम राष्ट्रहित में जरूरी हर कदम का समर्थन करते हैं और हमारे सशस्त्र बलों की बहादुरी को सलाम करते हैं।”

सरकार की ओर से गठित प्रतिनिधिमंडलों में कांग्रेस के शशि थरूर, भाजपा के रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा, द्रमुक की कनिमोझी, जदयू के संजय कुमार झा, राष्ट्रवादी कांग्रेस की सुप्रिया सुले और शिवसेना के श्रीकांत शिंदे जैसे सांसद शामिल हैं। इन 51 सदस्यों की सूची में गुलाम नबी आजाद, एमजे अकबर, आनंद शर्मा, सलमान खुर्शीद और एसएस अहलूवालिया जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, जो इस समय संसद सदस्य नहीं हैं।

इन प्रतिनिधिमंडलों की यात्राएं मई के अंत से शुरू होंगी और पाकिस्तान की आतंकवाद को लेकर भूमिका को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर करेंगी। ऐसे समय में टीएमसी के फैसले से सवाल खड़े हो गए हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के खिलाफ एकजुटता का संदेश देने के लिए गठित इस प्रतिनिधिमंडल से दूरी बनाने को लेकर एक बार फिर टीएमसी भाजपा के निशाने पर आने वाली है।