कोलकाता, 01 अक्टूबर । कोलकाता में एक महिला डॉक्टर की बलात्कार और हत्या के मामले में पोस्टमॉर्टम को लेकर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। जूनियर डॉक्टरों ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि पोस्टमॉर्टम में उनकी भूमिका सिर्फ हस्ताक्षर करने तक सीमित थी, जबकि पारदर्शिता का जिम्मा उनका नहीं है। जूनियर डॉक्टरों की यह प्रतिक्रिया तृणमूल कांग्रेस द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए एक दस्तावेज़ के जवाब में आई है, जिसमें डॉक्टरों पर पोस्टमॉर्टम को लेकर ‘द्विचारिता’ का आरोप लगाया गया था।
मामला तब गरमाया जब तृणमूल कांग्रेस ने एक दस्तावेज़ को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और दावा किया कि जूनियर डॉक्टरों ने ही पोस्टमॉर्टम की मांग की थी। इस पर पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टरों के संगठन के प्रतिनिधि किंजल नंदा ने मीडिया को बताया, “हमारे पास पोस्टमॉर्टम की पारदर्शिता की ज़िम्मेदारी नहीं है, भले ही उस नतीजे पर हमारे हस्ताक्षर मौजूद हों।”
किंजल नंदा ने स्पष्ट किया कि नौ अगस्त को सुबह उन्हें जानकारी मिली थी कि चेस्ट विभाग के सेमिनार रूम में पीजी की दूसरी वर्ष की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली है। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतता गया, यह स्पष्ट हो गया कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि बलात्कार और हत्या का मामला था। इसके बाद ही पोस्टमॉर्टम की प्रक्रिया शुरू की गई।
नंदा ने कहा कि पोस्टमॉर्टम विशेषज्ञों की देखरेख में, मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में हुआ। सोशल मीडिया पर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, उसकी हम कड़ी निंदा करते हैं।
इस बीच, सागर दत्ता मेडिकल कॉलेज में हमले के बाद जूनियर डॉक्टरों ने अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए पहले ही घोषणा कर दी थी कि वे सोमवार से पूर्ण हड़ताल पर लौटेंगे। डॉक्टरों ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दिए गए बयान के बाद कोर्ट की प्रतिक्रिया के आधार पर ही वे आगे का निर्णय लेंगे। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद जूनियर डॉक्टरों ने एक लंबी बैठक की और मंगलवार से फिर से हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया।
जूनियर डॉक्टरों ने राज्य सरकार के सामने 10 प्रमुख मांगें रखी हैं, जिनमें अस्पतालों में सुरक्षा सुनिश्चित करने से लेकर पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए पारदर्शी और तेजी से कार्रवाई की मांग शामिल है।