
भिक्षुओं ने की महापरिनिर्वाण मंदिर में विशेष पूजा- भिक्षुओं ने प्रधानमंत्री मोदी का जताया आभार
कुशीनगर, 31 जुलाई। भगवान बुद्ध से जुड़े पवित्र पिपरहवा अवशेषों के 127 वर्ष बाद भारत वापस आने से महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर के बौद्ध भिक्षुओं में खुशी की लहर है। प्राचीन बौद्ध विरासत को हांगकांग से सुरक्षित भारत वापसी के लिए यहां के भिक्षुओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार जताया और विरासत को कपिलवस्तु में ही संरक्षित करने की मांग की है। गुरुवार को इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए भिक्षुओं ने महापरिनिर्वाण मंदिर में विशेष पूजा की और परस्पर खुशियां साझा कीं।
इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. भिक्षु नन्दरतन ने कहा कि प्राचीन बौद्ध विरासत का वापस आना संपूर्ण बौद्ध जगत के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। केंद्र सरकार की सक्रियता से यह संभव हुआ है। भिक्षु अशोक ने कहा कि जिस प्रकार वैशाली में स्तूप का निर्माण कराकर बुद्ध की अस्थियां संरक्षित कर आम जन के दर्शन के सुलभ बनाया गया, ठीक उसी प्रकार हांगकांग से वापस आई बौद्ध विरासत को कपिलवस्तु में ही स्थापित किया जाए। प्रमुख बौद्ध भिक्षु चंदिमा, बौद्ध अध्ययन व सभ्यता संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर, भंते महेंद्र ,भंते अशोक डाॅ. ज्ञानादित्य शाक्य, तिब्बती मंदिर के लामा कुंचुक, टीके राय, अंबिकेश त्रिपाठी आदि ने इस कार्य के लिए मोदी सरकार के प्रति आभार व्यक्त किया है।
दरअसल, ब्रिटिश सिविल इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे ने 1898 में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा में खोजे अवशेषों को भगवान बुद्ध के पार्थिव अवशेषों से जुड़ा हुआ माना जाता है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास भगवान बुद्ध के अनुयायियों के प्रतिष्ठापित ये अवशेष लंबे समय से वैश्विक बौद्ध समुदाय के लिए अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखते रहे हैं और भारत के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों में से एक हैं। यह अवशेष पिपरहवा में संपत्ति में बने एक स्तूप की खुदाई में मिले थे। इनमें पांच अवशेषाें में अस्थियां, राख के अलावा नीलम, मूंगा, गार्नेट, मोती, रॉक क्रिस्टल, शंख और सोना जैसे तमाम रत्न शामिल थे। इंजीनियर विलियम क्लैक्सटन पेप्पे इन्हें अपने साथ ले गया। इस वर्ष मई माह में इन अवशेषाें और रत्नों काे हांगकांग में नीलामी के लिए रखा गया था। इसकी जानकारी मिलने पर भारत सरकार सक्रिय और इन अवशेेषाें काे भारत वापस लाने के प्रयास
शुरू हुए और अंतत: केन्द्र सरकार के प्रयास से यह अवशेष वापस आ गए हैं।