समालखा में अ.भा. वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता सम्मेलन का समापन
समालखा, 22 सितंबर। हरियाणा के समालखा में पट्टी कल्याणा स्थित सेवा धाम में देशभर से जुटे लगभग दो हजार जनजातीय प्रतिनिधियों के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भी दो दिन रहे। उन्होंने समापन सत्र को संबोधित करते हुए सम्मेलन में आए सभी प्रतिनिधियों से अपने क्षेत्र में जाकर जनजाति बंधुओं के बीच में व्यापक रूप से कार्य करने का आह्वान किया। उससे पूर्व उन्होंने सत्रों में उपस्थित रहकर जनजातीय समाज के लोगों की बातें सुनीं। उनके साथ बिरहोर जनजाति के बीच काम कर रहे जशपुर के पद्मश्री जगेश्वर भगत विशेष रूप से उपस्थित रहे।
इससे पूर्व, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता सम्मेलन के तीसरे दिन रविवार को प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने कहा कि जनजातीय समाज विशाल सनातनी समाज का आधार स्तंभ है। हम सभी की जड़-नाल वनों में ही गड़ी हुई है। प्राचीन वेदों की रचना में वनवासी समाज का भी अहम योगदान रहा है। सभी जनजाति समाज के पर्व-त्यौहार एवं पूजा पद्धति सनातनी परंपरा से मिलते हैं, जिसका भाव एक ही है। हमें अलग करने का षड्यंत्र अंग्रेजों की देन है। उस झूठे, मनगढ़ंत और भ्रमित विमर्श को दूर करने के लिए भारतीय विमर्श स्थापित करें।
समापन सत्र से पूर्व आयोजित प्रातःकालीन सत्र का प्रारंभ अरुणाचल प्रदेश की स्थानीय भाषा में प्रार्थना से हुआ, जिसका भावार्थ यही था कि सबका कल्याण हो। इसके बाद सभी जनजाति के वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। उल्लेखनीय है कि शनिवार शाम से देशभर की 80 जनजातीयों ने एक बड़े मैदान में अलग-अलग अपनी-अपनी पूजा पद्धतियों को प्रदर्शित किया, जिससे यह संदेश मिला कि भले पूजा के तौर तरीके अलग अलग हों, पर सभी में पंचतत्व के पूजन की समानता है। सभी सनातन संस्कृति से एक हैं। यही बात प्रातःकालीन सत्र में सभी जनजातीयों के प्रतिनिधियों ने दोहराई।
इस सबका सार अपने भाषण में संकलित करते हुए कल्याण आश्रम के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने कहा कि परतंत्रता के कालखंड में हमारी सनातन संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने और हमें विभाजित करने के षड्यंत्र रचे गए। उसी क्रम में अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पुस्तकों के माध्यम से रचा। जनजाति समाज संग्रही प्रवृत्ति का नहीं होता वह प्रकृति से उतना ही लेता है जितना उसे जरूरत है, ऐसे जनजाति समाज के अस्तित्व को बचाना हम सभी का कर्तव्य बनता है। वर्तमान समाज में जो विमर्श भ्रम फैला रहे हैं, उस भ्रामक विमर्शों से समाज को बचाने के लिए हमारे विमर्श स्थापित होने चाहिए। वर्तमान समय में हमारा विमर्श हमारी संस्कृति अरण्य संस्कृति है। ‘नगरवासी-वनवासी हम सब भारतवासी’ इस ध्येय वाक्य पर वनवासी कल्याण केंद्र कार्य कर रहा है।
इस सत्र को सम्बोधित करते हुए डॉ. राजकिशोर हांसदा ने भारत में लव जिहाद और लैंड जिहाद की समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समस्या झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन लगातार बढ़ रही है। वहां घुसपैठ कर आए बांग्लादेशी मुसलमान संथाली जनजाति की लड़कियों को झांसे में लेकर विवाह करते हैं और जनसंख्या बढ़ाने के साथ जमीन भी हड़प रहे हैं। इसके खिलाफ हम सभी को एक संग्राम छेड़कर अपने बहन-बेटी, जंगल-जमीन के साथ धर्म की रक्षा भी करना होगा।
नगालैंड के डॉ. थुंबई जेलियांग ने नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में धर्मांतरण विषय पर कहा की मतांतरित लोग वहां के स्थानीय लोगो को ही बाहरी साबित करने पर लगे हुए हैं। वनवासी कल्याण आश्रम के द्वारा संचालित विद्यालयों के साथ देश के अन्य स्थानों में स्थानीय बच्चों को पढ़ने की सुविधा से धर्मांतरण कराने वाले लोग विचलित हो गए हैं।
छत्तीसगढ़ प्रांत के संगठन मंत्री रामनाथ ने बस्तर के माओवाद समस्या पर कहा कि जिस जनजाति का अस्तित्व जंगल होता है उस जंगल में माओवादी लैंड माइंस बिछाए पड़े हैं, जहां वे स्वतंत्र रूप से जा नहीं सकते हैं। वहां के लोगों को सरकारी सुविधाओं से भी वंचित रहना पड़ता है, कारण सबके पास आधार कार्ड नहीं है। आधार बनाने के लिए शहर जाते हैं तो माओवादी उन्हें मुखबिर बताकर परेशान करते हैं। मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकारी विद्यालयों और आंगनबाड़ी के पक्के मकानों को तोड़ दिया जाता है, कारण वहां सुरक्षा बल रहने आते हैं। शिक्षा से वंचित रखकर माओवादी अशिक्षा के आड़ में ग्रामवासियों को अपने पक्ष में कर लेते हैं। ऐसे जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा स्वास्थ्य संगठन के कार्य व्यापक रूप में करने की आवश्यकता है।