चेन्नई, 22 जनवरी । गोमूत्र काे लेकर आईआईटी मद्रास के निदेशक प्राेफेसर वी कामकोटि के दावों के बाद राज्य में यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, थानथाई पेरियार द्रविड़ कझगम (टीपीडीके) ने कामकाेटि

के इस दावे काे छद्म विज्ञान और शर्मनाक बताया। टीपीडीके ने कामकाेटि से दावे के सबूत देने अन्यथा माफी मांगने की

मांग की है। इसके बाद डब्ल्यूएचओ के पूर्व सलाहकार डॉ. आरएस चौहान, सीएसआईआर-सीआईएमएपी के पूर्व निदेशक डॉ. एसपीएस खानुजा, तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई, भाजपा नेता तमिलिसाई सौंदर्यराजन और जाेहा कंपनी के सीईओ श्रीधर वेम्बू सहित कई प्रमुख लोग ्प्राेफेसर कामकोटि के बचाव में उतर आए हैं।

दरअसल, आईआईटी मद्रास के निदेशक वी कामकोटि ने “माट पोंगल” के दिन “गो संरक्षण शाला” में गायों की देसी नस्लों की रक्षा और जैविक खेती के महत्व पर अपने विचार रखने के दौरान एक वैज्ञानिक शोध का हवाला देते हुए कहा कि गोमूत्र में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और पाचन गुण होते हैं। वी. कामकोटि ने “गोमूत्र” के “औषधीय मूल्य” की प्रशंसा करते हुए उस संन्यासी के बारे में किस्सा सुनाया, जिसने गोमूत्र का सेवन करके तेज बुखार को ठीक किया था।

आईआईटी मद्रास के निदेशक का यह बयान राजनीतिक गलियारे में विवाद का विषय बन गया है। इस मामले में गोमूत्र अनुसंधान के प्रमुख अन्वेषक रहे व पंतनगर के पशु चिकित्सा महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आरएस चौहान ने आईआईटी मद्रास के निदेशक के दावे का समर्थन किया। डॉ. चौहान डब्ल्यूएचओ के पूर्व सलाहकार और आईवीआरआई, बरेली के निदेशक रह चुके हैं। जिन्होंने “पंचगव्य उपचार प्रणाली” के लिए “काउपैथी” नमक शब्द गढ़े।

इस मामले में सीएसआईआर-सीआईएमएपी के पूर्व निदेशक डॉ. एसपीएस खानुजा ने भी कामकाेटि के दावाें का समर्थन किया। डॉ. एसपीएस खानुजा ने विश्व में पहली बार वर्ष 2000 में गोमूत्र में कैंसर-रोधी गुणों की महत्वपूर्ण खोज में भूमिका निभाई थी। बाद में इसका अमेरिकन पेटेंट कराया था। डॉ. खानुजा ने सीएसआईआर के पूर्व महानिदेशक डॉक्टर आरए माशेलकर की मार्गदर्शन में किए गए शाेध में पाया कि गोमूत्र की कैंसर-रोधी गतिविधि गैलिक एसिड डेरिवेटिव के कारण होती है।

इससे पहले आईआईटी मद्रास के निदेशक वी कामकोटि के दावों पर कांग्रेस नेता कार्ति पी चिदंबरम ने निंदा करते हुए कहा कि आईआइटी मद्रास के निदेशक का छद्म विज्ञान का प्रचार करना अनुचित है। थानथाई पेरियार द्रविड़ कझगम ने भी गोमूत्र से लाभ की बात की निंदा की। टीपीडीके के नेता रामकृष्णन ने कहा कि यह सच्चाई के खिलाफ और शर्मनाक है। रामकृष्णन ने कहा कि कामकोटि को अपने दावे के लिए सबूत देने चाहिए या उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए। अगर वे माफ़ी नहीं मांगते हैं तो हम उनके खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन करेंगे।

प्राेफेसर कामकोटि के दावों ने राज्य में एक विवाद को जन्म दिया है। आलोचकों ने कामकाेटि के दावाें काे छद्म विज्ञान बताकर खारिज कर दिया। प्रोफेसर कामकोटि का बचाव करते हुए सभी ने यह माना है कि भारत आज पारंपरिक तथा आधुनिक विज्ञान के ज्ञान प्रणाली का मूल्य को पहचान रहा है। इस दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों के किए गए अनुसंधान में गोमूत्र के लाभ को बताया जा रहा है। प्रोफेसर कामकोटि गोमूत्र के औषधीय मूल्य का समर्थन करने वाले वैज्ञानिक पत्रों का हवाला दे रहे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन के मुद्दे ने भले ही एक नया विवाद को जन्म दिया हो लेकिन अब यह पूरा मामला राजनीतिक मुद्दा बन गया है। इस विवाद से गोमूत्र के गुणों की सच्चाई धीरे-धीरे सामने आ रही है।