कोलकाता, 06 मई । कलकत्ता हाई कोर्ट ने उच्च प्राथमिक शिक्षक भर्ती मामले में पश्चिम बंगाल सरकार के आवेदन पर सवाल खड़े किए हैं। अदालत ने पूछा है कि जब सुपरन्यूमरेरी यानी अतिरिक्त रिक्त पदों पर कोई अंतरिम स्थगनादेश लागू नहीं है, तो राज्य सरकार ने उस रोक को हटाने के लिए आवेदन क्यों किया है?

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु ने मंगलवार को प्रारंभिक सुनवाई में यह टिप्पणी करते हुए कहा कि खुद राज्य सरकार कह रही है कि अदालत द्वारा पूर्व में जारी किया गया अंतरिम आदेश पहले ही समाप्त हो चुका है। फिर भी उसी सरकार ने यह कहकर आवेदन दिया कि वह उस स्थगन आदेश को वापस लेना चाहती है। न्यायमूर्ति बसु ने यह भी कहा कि राज्य के आवेदन की तार्किकता को अदालत जांचेगी और इस पर अगली सुनवाई बुधवार को होगी, जिसमें राज्य को लिखित रूप में अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने उच्च प्राथमिक स्तर पर शारीरिक शिक्षा और कार्य शिक्षा विषयों में प्रतीक्षा सूची से नियुक्ति के लिए अतिरिक्त रिक्त पद (सुपरन्यूमरेरी पद) सृजित किए थे। वर्ष 2022 के दिसंबर में हाई कोर्ट ने इन पदों पर अंतरिम रोक लगाई थी। हाल ही में 26 हजार शिक्षक नियुक्तियों को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में सुपरन्यूमरेरी पदों पर राज्य सरकार के फैसले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया था। इसी निर्णय का हवाला देते हुए राज्य ने हाई कोर्ट में एक नया आवेदन दाखिल कर इन पदों पर नियुक्ति की अनुमति मांगी और स्थगनादेश हटाने की अपील की।

सरकार ने यह भी तर्क दिया कि स्थगन आदेश की अवधि अब तक बढ़ाई नहीं गई है, इसलिए उसे समाप्त माना जाए। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि जब स्थगनादेश पहले ही खत्म हो चुका है, तो उसे हटाने का आवेदन देने का औचित्य क्या है?

दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से पुनः अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता के वकील अशिष कुमार चौधुरी ने अदालत से सवाल किया कि जब स्थगनादेश की अवधि बढ़ाई नहीं गई थी, तब भी राज्य सरकार ने अब तक नियुक्ति प्रक्रिया को आगे क्यों नहीं बढ़ाया? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर उदासीन रवैया अपनाया गया।

इस बीच, न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु ने निजी कारणों का हवाला देते हुए शारीरिक शिक्षा से संबंधित मुख्य याचिका से स्वयं को अलग कर लिया। उन्होंने कहा कि अब यह मामला मुख्य न्यायाधीश को भेजा जाएगा, जो तय करेंगे कि आगे इसकी सुनवाई किस पीठ में होगी।