
कोलकाता, 13 जून । मंदारमणि में अवैध होटल निर्माण के मामले में शुक्रवार को कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों की भूमिका पर असंतोष जताया। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य सरकार होटल मालिकों के पक्ष में खड़ी है, जबकि केंद्र सरकार की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं आ रहा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर तक, सभी होटलों को न तोड़ने के अंतरिम आदेश को जारी रखने का निर्देश दिया है।
हाई कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि समुद्रतटीय क्षेत्र में अतिक्रमण कर कई होटलों का अवैध निर्माण हुआ है। पूर्व मेदिनीपुर जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के निर्देशानुसार इन निर्माणों को तोड़ने का नोटिस भी जारी किया था, जिसके खिलाफ होटल मालिकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
इस दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने कोर्ट में दावा किया कि राज्य में किसी भी इलाके को ‘कोस्टल रेगुलेशन जोन’ (सीआरज़ेड) के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है। इस पर न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने हैरानी जताते हुए पूछा कि जब सीआरज़ेड की अधिसूचना जारी करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, तो अब तक इसका कोई स्पष्ट निर्धारण क्यों नहीं किया गया।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने बताया कि इस विषय में जिम्मेदार अधिकारियों से जानकारी मांगी गई है, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक चिह्नांकन नहीं हुआ है। वहीं, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका को लेकर राज्य के पर्यावरण विभाग के वकील ने दलील दी कि निर्माण अनुमति का अधिकार राज्य के पास नहीं है, बल्कि वह पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन आता है।
सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य दोनों के जवाबों से असंतुष्ट दिखीं न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा, “राज्य सरकार होटल मालिकों का समर्थन करती दिख रही है और केंद्र सरकार से कोई भी जवाब नहीं आ रहा।” उन्होंने आगे कहा कि अदालत अब केवल यह देखेगी कि क्या कानून के अनुसार वहां होटल चलाया जा सकता है या नहीं।
केंद्र ने कोर्ट से “अंतिम अवसर” मांगा है ताकि वह स्थिति स्पष्ट कर सके। फिलहाल 26 सितंबर तक के लिए होटल न तोड़े जाने के आदेश को बरकरार रखा गया है।