कोलकाता, 2 नवंबर। कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है, जिसने अपने बड़े भाई की हत्या का दोषी ठहराए जाने के बाद नौ साल से अधिक समय तक जेल में बिताए। अदालत ने पाया कि आरोपित रणदीप बनर्जी ने अपने भाई की हत्या नहीं की थी और अभियोजन पक्ष इस अपराध को साबित करने में असफल रहा है।

हाईकोर्ट के डिविजन बेंच में न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति उदय कुमार शामिल थे। जजों ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य को पूर्ण रूप से साबित करने में असफल रहा है। रणदीप को पहले निचली अदालत ने 25 मई, 2017 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी ठहराया था। यह मामला गरियाहाट पुलिस स्टेशन में 24 अप्रैल, 2015 को दर्ज किया गया था।

रणदीप के वकील सोहम बनर्जी ने बताया कि उनके मुवक्किल को 24 अप्रैल, 2015 को गिरफ्तार किया गया था और तभी से वह जेल में हैं। इस मामले की शिकायत रणदीप के चचेरे भाई जॉयदीप बनर्जी ने की थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि रणदीप ने अपने बड़े भाई सुदीप बनर्जी की हत्या की है। सुदीप मानसिक समस्याओं से ग्रस्त थे, 2009 से रणदीप के साथ बालीगंज गार्डन्स स्थित अपने घर में रह रहे थे।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध करना तभी संभव है जब सभी लिंक आरोपित को घटना से जोड़ते हों। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के मामले में महत्वपूर्ण खामियां हैं और इस मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। साथ ही, हत्या के पीछे का उद्देश्य भी स्थापित नहीं किया जा सका।

अदालत ने कहा कि आश्चर्यजनक है कि जांच अधिकारी ने नजदीकी पड़ोसियों और घर के किरायेदारों के बयान दर्ज नहीं किए। अगर ऐसा अपराध होता है तो किरायेदारों को इसके बारे में पता होना चाहिए था। अदालत ने यह भी नोट किया कि पुलिस ने एक सफेद लोहे की पाइप, पुराने तकिए और बिस्तर की चादर को जब्त किया था जिन पर खून के धब्बे थे, लेकिन उनका फोरेंसिक परीक्षण नहीं किया गया जिससे यह साबित हो सके कि खून पीड़ित का था या उन पर आरोपित के फिंगरप्रिंट्स मौजूद थे।

अदालत ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों के अभाव में अभियोजन का केस कमजोर हो गया और रणदीप को दोषमुक्त कर दिया गया।