
पश्चिम सिंहभूम, 12 अगस्त । पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित मंझारी प्रखंड के पिछड़े गांव बरकुंडिया में जन्मे डॉ. बलभद्र बिरुवा ने अपने बचपन में गांव की दयनीय आर्थिक स्थिति को करीब से देखा। यह स्थिति उनके जीवन का नया मोड़ साबित हुई, जिसने उन्हें अर्थशास्त्र के प्रति गहरी रुचि दी। शिक्षा को हथियार बनाकर उन्होंने संघर्ष की राह पर कदम बढ़ाया और आज दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित सत्यवती कॉलेज (ऑफ कैंपस) में असिस्टेंट प्रोफेसर (इकॉनोमिक्स) के पद पर कार्यरत हैं। यहां वह भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था का ज्ञान बांट रहे हैं और विद्यार्थियों को सोच की नई दिशा दे रहे हैं। वे अपने हो समाज से हैं और अपने समाज के एक मात्र प्रोफेसर हैं।
नैक की ओर से ‘ए प्लस’ ग्रेडिंग प्राप्त इस पचास वर्ष पुराने कॉलेज में करीब 190 शिक्षकों के बीच डॉ. बिरुवा अकेले आदिवासी प्रोफेसर हैं, जो अपने समुदाय के लिए गर्व का विषय हैं। हालांकि वह वर्तमान में एडहॉक श्रेणी में कार्यरत हैं, लेकिन उनका समर्पण और मेहनत उन्हें छात्रों के बीच एक प्रेरणादायक शिक्षक बनाता है।
डॉ. बिरुवा ने ग्रेजुएशन संत जेवियर्स कॉलेज, रांची से, पोस्ट-ग्रेजुएशन जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से और पीएचडी दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी की। गांव की खस्ता अर्थव्यवस्था को देखकर अर्थशास्त्र को अपना विषय बनाने वाले डॉ. बिरुवा अब न केवल ज्ञान बांट रहे हैं, बल्कि अपनी कहानी से छात्रों को यह भी सिखा रहे हैं कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, इच्छाशक्ति और मेहनत से उन्हें बदला जा सकता है।