खूंटी, 22 जुलाई । झारखंड में शिव पूजन की परम्परा कब और कहां से शुरू हुई, इसकी कोई सटीक जानकारी किसी को नहीं है, पर इतना तय है कि झारखंड खासकर खूंटी जिले में शिवपूजन की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है।

जानकार बताते हैं कि पाशुपात्य संप्रदाय को शैव धर्म का सबसे प्राचीन संप्रदाय माना जाता है। प्राचीन ग्रथों के अनुसार इस क्षेत्र में असुरों का सामाज्य था और उनके आराध्य देवों के देव महादेव थे,उनके बिना उनके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि पूरे खूंटी जिले में शैव आराधना के कई ऐतिहासिक और प्राचीन स्थल विद्यमान हैं।

बात चाहे बाबा आम्रेश्वर धाम की करें, विशाल पीपल पेड़ पर विराजमान जरिया महादेव टोली के भोलेनाथ हों या खूंटी के बुढ़ावा महादेव अथवा नामकोम के बूढ़ा महादेव या तोरपा के पतरायुर स्थित बाबा नागेश्वर धाम अथवा कौई अन्य। ये सभी शिवलिंग स्वयंभू हैं और किसी ने उनकी स्थापना नहीं की है।

खुले आसमान के नीचे विराजमान 12 शिवलिंग

देवो कें देव महादेव के भक्तों के लिए ऐसे ही एक और आस्था का केंद्र है मुरहू प्रखंड स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग। वहां के बुजुर्गों की मानें तो, बम्हणी गांव में खुले आमसान के नीचे विराजमान बारह शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग क्रे प्रतीक हैं। गांव कें पूर्व जमींनदार परिवार से संबंध रखनेवाले 80 वर्षीय खुश बहाल सिंह और हरिला देवी ने कहा कि मूल रूप से उनके वंशज मुरहू प्रखंड के गानालोया गांव के रहने वाले थे। शिकार खेलने कें दौरान उन्हें एक ही जगह बारह शिव लिंग के दर्शन हुए, तभी से उनके पूर्वज यहां आकर बस गये। खुश बहाल सिंह ने बताया कि इस स्थान का संबंध महाभारत काल से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि भगवान भोलेनाथ का सर्वांग स्वरूप देखना हो तो, बम्हणी गांव से बेहतर कोई उदाहरण नहीं हो सकता। खुश बहाल सिंह ने बताया कि सिर्फ एक शिव लिंग का ही मंदिर बना है और अन्य सभी शिव लिंग खुले आमसान के नीचे ही विराजमान हैं।

सरकार द्वारा सभी शिव लिंगों के आसपास दो-तीन फीट की घेंराबंदी के आलावा पूरे धाम परिसर की घेराबंदी कराई गई है। मंदिर में पूजा करने आई मंजू देवी ने बताया कि वहां पर सैकड़ों वर्षों से ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को विशाल मंडा पूजा का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि मंदिर की दिशा में आदिकाल का एक तालाब भी है।

वहीं स्नान करने के बाद श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते थे। कहा जाता है कि पहले तालाब से जो कुछ मांगा जाता था उसकी पूर्ति होती थी, लेकिन अब यह बात देखने को नहीं मिलती, पर तालाब अब भी विद्यमान है।