कोलकाता, 7 जनवरी । हिंदी के वरिष्ठ कवि ध्रुव देव मिश्र “पाषाण” का मंगलवार को उनके छोटे बेटे वाचस्पति मिश्र के देवरिया स्थित आवास पर निधन हो गया। पाषाण जी का जन्म उत्तर प्रदेश के गाँव इमिलिया, जिला देवरिया में को हुआ कोलकाता उनकी कर्मस्थली रही। पाषाण जी अपने पीछे भर पूरा परिवार और ढेर सारे चाहनेवालों को छोड़ गए हैं।
उन्होंने देवरिया टाइम्स (हिंदी साप्ताहिक,1964), प्रतिबध्द (लघु पत्रिका,1970), प्रतिज्ञ (काव्य संग्रह,1977) का संपादन और प्रस्थान (लघु पत्रिका,1979), खेल-खेल में (बाल कविताएं, 1985), जनपक्ष (साप्ताहिक, 1977), सूरदास (एक सान्दर्भिक पुनरावलोकन, 1978), महाप्राण निराला (1998) का सह-संपादन किया।
लक्ष्मण केडिया संपादित ‘धारदार शीशा’ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित ग्रंथ है। नीरज कुमार सिंह ने ‘ध्रुवदेव मिश्र की कविताओं में राजनीतिक चेतना’ पर आलोचना प्रबंध लिखा है। पाषाण जी पर विशेष अंक भी प्रकाशित हुए हैं।
उनकी प्रकाशित रचनाएं हैं – विद्रोह (नाटक,1958), लौट जाओ चीनियों (काव्य पुस्तिका, 1962), एक शीर्षक हैं कविता और पांच अन्य कविताएं (1968), बंदूक और नारे (लंबी कविता, 1968), में भी गुरिल्ला हूँ (काव्य पुस्तिका, 1969), कविता तोड़ती है (काव्य पुस्तिका, 1977), विसंगतियों के बीच (1978), धूप के पंख (काव्य संग्रह,1983), खंडहर होते शहर के अंधेरे में (1988), वाल्मीकि की चिंता (लंबी कविता,1992), चौराहे पर कृष्ण (लंबी कविता,1993), ध्रुवदेव मिश्र पाषाण की कुछ कविताएं (रमाशंकर प्रजापति के संपादन में,2000), पतझड़-पतझड़ वसंत (काव्य संग्रह ,2009) आदि।
कोलकाता नगर निगम ने ऐतिहासिक टाउन हॉल में पाषाण जी का नागरिक अभिनंदन किया था। इस सम्मान को पानेवाले वे पहले हिंदीभाषी थे।
कोलकाता राजस्थान सांस्कृतिक विकास परिषद के महासचि केशव भट्टड़ ने ध्रुव देव मिश्र “पाषाण” के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण जी हिंदी साहित्य के प्रगतिशील धारा के कवियों की अपनी पीढ़ी के महत्वपूर्ण कवि के रूप में याद किए जाएंगे। उनका चले जाना , कभी न भरने वाली एक रिक्ति है।