
पलामू, 31 मई ।‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर स्थानीय होटल ज्योति लोक के सभागार में शनिवार को प्रबुद्धजनों के साथ संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता पलामू सांसद विष्णु दयाल राम ने की। जहां लोगों ने बारी-बारी से अपने मंतव्यों को रखा। सभी ने एक स्वर से एक देश, एक चुनाव पर बल दिया।
मौके पर सांसद ने कहा कि एक देश एक चुनाव का उद्देश्य है कि चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाए और चुनावों की आवृत्ति को कम किया जाए, जिससे समय और संसाधनों की बचत होगी। यह विचार वर्ष 1983 से ही अस्तित्व में है, जब निर्वाचन आयोग ने पहली बार इसे पेश किया था। हालांकि वर्ष 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव आयोजित कराना एक सामान्य परिदृश्य रहा था।
लोकसभा के प्रथम आम चुनाव और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव 1951-52 में एक साथ आयोजित कराये गए थे। यह अभ्यास वर्ष 1957, 1962 और 1967 में आयोजित अगले तीन आम चुनावों में भी जारी रहा, लेकिन वर्ष 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय-पूर्व विघटन के कारण यह चक्र बाधित हो गया।
उन्होंने कहा कि बार-बार चुनाव होने से शीर्ष नेताओं से लेकर स्थानीय प्रतिनिधियों तक पूरे देश का ध्यान भटक जाता है, जिससे विभिन्न स्तरों पर प्रशासन एक तरह से पंगु हो जाता है। यह चुनावी व्यस्तता भारत की विकास संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और प्रभावी शासन में बाधा उत्पन्न करती है। चुनावों के दौरान लागू आदर्श आचार संहिता राष्ट्रीय और स्थानीय दोनों स्तरों पर प्रमुख नीतिगत निर्णयों में विलंब का कारण बनती है।
यहां तक कि चल रही परियोजनाओं में भी बाधा उत्पन्न होती है, क्योंकि चुनाव संबंधी कर्तव्यों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे नियमित प्रशासन में सुस्ती आ जाती है। बार-बार चुनाव का आयोजन राजनीतिक भ्रष्टाचार में योगदान करते हैं क्योंकि प्रत्येक चुनाव के लिये उल्लेखनीय मात्रा में धन जुटाने की आवश्यकता होती है।
एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च में व्यापक कमी आ सकती है, जिससे बार-बार धन जुटाने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। इससे आम लोगों और व्यापारिक समुदाय पर बार-बार चुनावी चंदा देने का दबाव भी कम हो जाएगा।
निश्चित अवधियों पर चुनाव कराने से प्रतिनिधियों के लिये व्यक्तिगत लाभ के लिये दल बदलना या गठबंधन बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जो मौजूदा दल-बदल विरोधी कानूनों को पूरकता प्रदान करेगा। एक साथ चुनाव का आयोजन इस समस्या को कम कर सकता है, राज्य सरकारों पर वित्तीय बोझ घट सकता है और वृहत वित्तीय स्थिरता में योगदान प्राप्त हो सकता है।