
पलामू, 27 जून (हि.स.)।भारत-पाक युद्ध (1965 व 1971) के बाद पाकिस्तान चले गए लोगों की संपत्तियों को केंद्र सरकार की ओर से”शत्रु संपत्ति” घोषित कर ई-नीलामी के माध्यम से नीलाम किया गया। लेकिन पलामू जिले के हुसैनाबाद अनुमंडल अंतर्गत हैदरनगर के करीमनडीह गांव (मोकहर कला पंचायत) में इन संपत्तियों की नीलामी गुपचुप ढंग से कर दी गई, जो कृषि भूमि थी। इससे न केवल स्थानीय लोगों में भारी नाराज़गी है, बल्कि सरकार को राजस्व की भी भारी क्षति हुई है।
सूत्रों के अनुसार, कुल 11 संपत्तियों को नीलामी प्रक्रिया में शामिल किया गया, जिनका कुल रकबा लगभग 3.48 हेक्टेयर (8.6 एकड़) है और कुल आरंभिक मूल्य 10,42,868 तय किया गया था। लेकिन नीलामी की प्रक्रिया को न तो समाचार पत्रों में प्रचारित किया गया और न ही माईकिंग जैसे स्थानीय सूचना माध्यमों का सहारा लिया गया। नतीजतन, आम लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगी और 25 जून को हुई नीलामी में महज एक ही परिवार के चार सदस्य शामिल हुए और उसी परिवार के दो लोगों ने ये ज़मीनें हासिल कर लीं।
22 जून तक ही पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि थी, जबकि 23 जून को पंचायत भवन पर नोटिस चिपकाया गया और कुछ ही समय बाद हटा भी लिया गया। ग्रामीणों का कहना है कि जब उन्हें जानकारी मिली तब तक पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन बंद हो चुका था, जिससे वे भाग नहीं ले सके।
नीलामी में पंचायत की मुखिया नजमा खातून के परिजन ही शामिल हुए, जिससे पक्षपात का स्पष्ट संकेत मिलता है। मुखिया पति नवाजिश खान का दावा है कि सूचना पंचायत सचिवालय व अंचल कार्यालय में प्रकाशित की गई थी, लेकिन राजद के प्रदेश सचिव रिजवान खां एवं स्थानीय लोगों का कहना है कि जानबूझकर सूचना छुपाई गई।
ग्रामीणों ने सरकार और जिला प्रशासन से मांग की है कि इस नीलामी को रद्द किया जाए और पुनः पारदर्शी तरीके से नीलामी की जाए, ताकि सभी इच्छुक लोग भाग ले सकें और सरकार को भी उचित राजस्व प्राप्त हो।
जानकारों का मानना है कि यदि नीलामी की सूचना सही समय पर सार्वजनिक होती, तो अधिक बोली लगने की संभावना रहती और सरकार को कहीं अधिक राजस्व मिलता। इस गुपचुप प्रक्रिया ने न सिर्फ लोकतांत्रिक पारदर्शिता को ठेस पहुंचाई, बल्कि सरकारी खजाने को भी नुकसान पहुँचाया है।
यह मामला केवल नीलामी प्रक्रिया की पारदर्शिता का नहीं, बल्कि जनहित व सरकारी राजस्व के संरक्षण का भी है। यदि ऐसी संपत्तियों की नीलामी सही तरीके से की जाए, तो यह सरकार और जनता दोनों के लिए लाभकारी हो सकती है। ग्रामीणों की मांग अब ज़ोर पकड़ रही है कि नीलामी को रद्द कर निष्पक्ष व सार्वजनिक सूचना के साथ दोबारा प्रक्रिया शुरू की जाए।