कोलकाता, 14 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट के फैसले तथा उससे संबंधित विभिन्न जटिल कानूनी विचारों एवं प्रक्रियाओं, साथ ही राजनैतिक दबाव के कारण उत्पन्न स्थिति तथा उसके दूरगामी परिणामों के संबंध में चर्चा करने, बर्खास्त शिक्षकों के वेतन संबंधी अनिश्चयता पर सिद्धांत ग्रहण करने हेतु कोलकाता के हाजरा स्थित सुजाता सदन में राज्य के विभिन्न जिलों से आए तकरीबन पांच सौ प्रधानाध्यापक और प्रधानाध्यापिकाओं की एक सभा का आयोजन किया गया था।

प्रधानाध्यापकों की इस सभा में समवेत रुप से यह सिद्धांत लिया गया कि वे न्यायालय के फैसले से बर्खास्त शिक्षकों के वेतन को नियमानुसार आईओएसएमएस पोर्टल पर दर्ज करेंगे क्योंकि उनके पास स्कूल शिक्षा विभाग, बोर्ड या विद्यालय परिदर्शक की तरफ से कोई आदेश नहीं आया है कि किस-किस का वेतन रोका जाना है। साथ ही पोर्टल से नाम हटाना या जोड़ना उनके अधीन नहीं है। इस परिस्थिति में यदि इन शिक्षकों का वेतन दर्ज़ नहीं होता तो उस स्थिति में विद्यालय के किसी शिक्षक का वेतन सुनिश्चित नहीं होगा और उसे डीडीओ के पास नहीं भेजा जा सकता, यह स्थिति कर्मरत शिक्षकों को असुविधा में डाल देगी।

ज्ञातव्य हो कि वेतन डीडीओ जो कि डीआई हैं उन्हें डिसबर्स करना है, अतः किसे वेतन देना है इस पर अंतिम फैसला डीडीओ या नियोक्ता का होगा। इस संदर्भ में विद्यालय परिदर्शक को एक स्पष्ट निर्देश देने को कहा जायेगा। इस पत्र की एक प्रति ई-मेल के माध्यम से स्कूल शिक्षा विभाग के कमिश्नर और बोर्ड को भी भेजा जायेगा।

सोमवार को एक प्रधानाचार्य ने बताया कि यह सिद्धांत सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्षी दलों द्वारा दिए गए विभिन्न प्रकार की धमकियों के मद्देनजर लिया गया है। सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक और सांसद जहां वेतन रोकने पर परिणाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ विरोधी पार्टी कानूनी कार्रवाई, सूचना के अधिकार और अदालत अवमानना संबंधित धमकी दे रही है। इन परिस्थितियों में विचारणीय विषय है कि क्या प्रधानाध्यापक बर्खास्त शिक्षकों को कार्य करने दें और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध वेतन लेने दें।

इस पूरे प्रकरण में स्कूल शिक्षा विभाग, बोर्ड, स्थानीय शिक्षा दफ्तरों से लिखित आवेदन करने पर भी कोई जवाब किसी भी तरीके से नहीं दिया गया।

उल्लेखनीय है कि इस मुकदमे से जुड़े वकीलों ने प्रधानाध्यापकों को यह चेतावनी दी है कि यदि वे इन बर्खास्त शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज कराते हैं या वेतन भेजते हैं तो वे भी अदालत अवमानना के दायरे में आ सकते हैं।