देश भर में 300 से अधिक, बंगाल में 18 से 20 सीट भाजपा को – सट्टा बाजार का अनुमान
राजीव हर्ष
बीकानेर । चुनावों की आहट होते ही सट्टा बाजार उत्सुकता का केंद्र बन जाता है। इस बाजार में हर बात पर दाव लगाए जा सकते हैं। बारिश होगी कि नहीं, होगी तो कितनी होगी, कौन जीतेगा – कौन हारेगा से लेकर आसमान में उछाली हुई जूती उल्टी गिरेगी या सीधी तक पर दाव लगाए जा सकते हैं। वैसे तो यह पूरे साल सक्रिय रहता है तब आम जनता को इससे मतलब नहीं होता। लेकिन जब चुनाव आते है तब आम आदमी भी इस बाजार की चाल देखने में उत्सुक हो जाता है।
उसकी उत्सुकता दाव लगाने के लिए नहीं है, उसे सट्टा नहीं खेलना है। वह तो इस बाजार के जरिये ये जानना चाहता है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम क्या रहेंगे ? क्या मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन पाएंगे ? क्या उनका नारा अबकी बार 400 पार सफल हो पाएगा क्या? क्या मोदी जी बंगाल में ममता दीदी को शिकस्त दे पाएंगे ? क्या दक्षिण भारत में भाजपा अपने कदम बढ़ा पाएगी।
चुनाव के दौरान लोग जितना भरोसा टीवी चैनल और एग्जिट पोल पर करते हैं, उससे कहीं अधिक भरोसा वे सट्टा बाजार पर करते हैं। नुक्कड़ों-चौराहों पर, चाय की थडि़यों, पान की दुकानों और भ्रमण पथों पर होने वाली चर्चाओं में नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों के दावों से ज्यादा अहमियत सट्टा बाजार के दावों को दी जाती है।
आम धारणा यह है कि नेता तो पूर्वाग्रही होते ही हैं, राजनीतिक विश्लेषक भी पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो सकते हैं। इसलिए उनके दावों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सट्टा बाजार पर भरोसा करने वाले लोग कहते हैं कि सट्टा बाजार पूर्वाग्रहों से नहीं चलता। करोड़ों अरबों रुपयों का व्यापार होता है यहां। इस बाजार के भाव जमीनी हकीकत पर तय होते हैं। यहां भावनाओं और पूर्वाग्रहों का कोई स्थान नहीं है। इस बाजार खिलाड़ी कहते हैं कि सट्टा बाजार के भाव जो तस्वीर पेश करते हैं वह 70 से 80 प्रतिशत सही होती है।
सदियों पुराना ये परम्परागत सट्टा बाजार हमारे हाट बाजार, वर्चुअल बाजार, डिजिटल नेटवर्क, इन सबसे कई कदम आगे है, इसका कहीं कोई अस्तित्व नहीं है फिर भी यह सर्वव्यापी है। करोड़ों- अरबों का लेनदेन करने वाले इस बाजार में कोई खाता, बही नहीं है। न कोई न सॉफ्टवेयर न कोई एप, कोई हिसाब किताब नहीं है।
कानून की दृष्टि से इस बाजार में होने वाला हर लेन देन गैरकानूनी और अवैध है। फिर भी लोग इस पर भरोसा करते हैं। इस गैर कानूनी धंधे में सारा लेनदेन बहुत ईमानदारी के साथ होता है।
किसी जमाने में यह बाजार मुख्य बाजार के बीचो बीच सड़क पर लगा करता था। सारा सौदे वहीं हुआ करते थे। कानून के भय से सारे सौदे अब यह मोबाइल फोन के जरिये होने लगे हैं।
सट्टा बाजार का कोई ढांचा नहीं है फिर भी माना जाता है कि इस बाजार का सुसंगठित नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है। इस बाजार के खिलाड़ी देश के लगभग हर कोने में मौजूद हैं। वे अपने स्तर पर सर्वे करते हैं। फिर उस के आधार पर उम्मीदवारों की हार या जीत के भाव तय करते हैं, इसीलिए सट्टा बाजार के भाव फलोदी, बीकानेर से लेकर चेन्नई या मुंबई या कोलकाता सब जगह लगभग एक ही मिलते हैं।
क्या कहता है सट्टा बाजार
सट्टा बाजार के मुताबिक इस साल इस चुनाव में बीजेपी को 302 से 305 सीट मिलने की उम्मीद है। वहीं कांग्रेस को 60 से 62 सीट मिल सकती है। पश्चिम बंगाल में भाजपा को 18 से 20 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को 18 से 20 सीटें सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। मध्य प्रदेश में भाजपा की 28 से 29 सीटें आने की संभावना है, उत्तर प्रदेश में भाजपा को 64 से 66 सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। देखते हैं इस बार सट्टा बाजार कितना सही साबित होता है।