
कोलकाता, 18 मई । भारत में विज्ञान केंद्र आंदोलन के जनक और विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. सरोज घोष का अमेरिका के सीएटल में निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे। डॉ. घोष न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विज्ञान के प्रचार-प्रसार और विज्ञान संग्रहालयों के निर्माण में अग्रणी माने जाते थे।
रविवार को नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्यूज़ियम्स (एनसीएसएम) ने उनके निधन की सूचना देते हुए बताया कि उनका पार्थिव शरीर अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी को शोध कार्यों के लिए दान कर दिया गया है।
डॉ. सरोज घोष विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने की दिशा में एक आंदोलन के सूत्रधार थे। उन्होंने 1960 के दशक में यह सपना देखा कि विज्ञान संग्रहालयों और केंद्रों के माध्यम से देश के कोने-कोने में विज्ञान को लोकप्रिय बनाया जाए। उन्होंने वर्ष 1978 में भारत के पहले राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय की स्थापना में अहम भूमिका निभाई, जिससे प्रेरित होकर देशभर में विज्ञान केंद्र स्थापित किए गए, जिनमें कोलकाता का सायंस सिटी भी शामिल है।
डॉ. घोष ने कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में स्नातक किया। वर्ष 1958 में उन्होंने बीआईटीएम (बिड़ला इंडस्ट्रियल एंड टेक्नोलॉजिकल म्यूज़ियम) में तकनीकी अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला। अगले ही वर्ष जब बीआईटीएम खुला, तब वे इसके प्रमुख स्तंभ बन गए।
भारत में शुरू किया ‘मोबाइल साइंस म्यूज़ियम’
वर्ष 1965 में उन्होंने बीआईटीएम की कमान संभाली और उसी वर्ष देश का पहला ‘मोबाइल साइंस म्यूज़ियम’ शुरू किया। इसका उद्देश्य था – “अगर बच्चे विज्ञान संग्रहालय तक नहीं आ सकते, तो विज्ञान संग्रहालय को उनके पास ले जाया जाए।” आज एनसीएसएम पूरे भारत में 48 मोबाइल साइंस एग्जिबिशन वैन चलाता है, जिसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने भारत का सबसे बड़ा और सबसे लंबा चलने वाला अनौपचारिक विज्ञान शिक्षा कार्यक्रम घोषित किया है।
डॉ. घोष ने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका का रुख किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से ‘कंट्रोल इंजीनियरिंग’ में एमएस डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूशन, वॉशिंगटन डीसी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इतिहास पर शोध किया। भारत लौटने के बाद, उन्होंने ‘भारत में विद्युत टेलीग्राफ की भूमिका’ पर पीएचडी की।
अमेरिका में बच्चों के लिए इंटरएक्टिव साइंस गैलरी का अनुभव लेने के बाद वे इस मॉडल को भारत लाए। उनके प्रयासों से 1985 में मुंबई में नेहरू साइंस सेंटर की शुरुआत हुई, जो भारत का पहला पूर्ण रूप से इंटरएक्टिव साइंस सेंटर था। इसके बाद 1992 में दिल्ली का नेशनल साइंस सेंटर भी इसी मॉडल पर शुरू हुआ।
डॉ. घोष ने 1992 में ‘विज्ञान नगरी’ की परिकल्पना रखी – एक ऐसा मेगा साइंस सेंटर जो विज्ञान प्रदर्शनियों, स्पेस थिएटर, मोशन सिम्युलेटर और सम्मेलन केंद्र जैसी सुविधाओं से युक्त हो। इस सपने को साकार करते हुए कोलकाता में 50 एकड़ भूमि पर सायंस सिटी की स्थापना हुई, जो 1997 में आम लोगों के लिए खोली गई। यह आज भारत का सबसे अधिक देखा जाने वाला विज्ञान केंद्र है।
डॉ. घोष को विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। उन्हें भारत सरकार ने 1989 में पद्मश्री और 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1988 में उन्हें ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ और ‘हरी ओम ट्रस्ट पुरस्कार’ भी मिले। इसके अलावा, वे ट्रिएस्ट इंटरनेशनल फाउंडेशन का ‘प्रिमो रोविस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार’ (1996) और अमेरिका की एएसटीसी फेलोशिप (1997) से भी सम्मानित किए गए।
एनसीएसएम के महानिदेशक के रूप में नेतृत्व
वर्ष 1979 में डॉ. घोष एनसीएसएम के निदेशक और फिर 1986 में महानिदेशक बने। उन्होंने पूरे भारत में 18 विज्ञान केंद्रों की स्थापना की, जिनमें दो राष्ट्रीय, सात क्षेत्रीय और आठ जिला स्तरीय केंद्र शामिल हैं।
उन्होंने ‘भारत : विज्ञान की परंपरा’ नामक अंतरराष्ट्रीय यात्रा प्रदर्शनी की परिकल्पना की, जिसे अमेरिका, फ्रांस, सोवियत संघ, चीन, बांग्लादेश और कई अन्य देशों में प्रस्तुत किया गया। यह भारत के विज्ञान अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला कदम था।
डॉ. घोष हमेशा समर्पित वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों और प्रशासकों की एक प्रेरित टीम खड़ी करने में विश्वास रखते थे। उनका मंत्र था – “काम ही पूजा है”, और वे इसे अपने कर्मचारियों के दिल में बिठा पाने में सफल रहे। वर्ष 1997 में उन्होंने एनसीएसएम से सेवानिवृत्ति ली, लेकिन उनके दूरदर्शी नेतृत्व के कारण यह संस्था आज भी विज्ञान प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रही है।