नई दिल्ली, 17 जुलाई। रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ने मिशन ‘नन्हे फरिस्ते’ के अंतर्गत पिछले सात वर्षों के दौरान स्टेशनों और ट्रेनों में परिजनों से बिछड़े 84,119 बच्चों को उनके परिवारों से मिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रेल मंत्रालय ने बुधवार को एक विज्ञप्ति जारी कर बताया कि पिछले सात वर्षों में आरपीएफ ‘नन्हे फरिस्ते’ नामक ऑपरेशन में अग्रणी रहा है। यह एक मिशन जो विभिन्न भारतीय रेलवे जोनों में पीड़ित बच्चों को बचाने के लिए समर्पित है। पिछले सात वर्षों (2018-मई 2024) के दौरान, आरपीएफ ने स्टेशनों और ट्रेनों में खतरे में पड़े या खतरे में पड़ने से 84,119 बच्चों को बचाया है।

मंत्रालय के अनुसार, नन्हे फरिश्ते सिर्फ एक ऑपरेशन से कहीं अधिक ; यह उन हजारों बच्चों के लिए एक जीवन रेखा है जो खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं। 2018 से 2024 तक का डेटा, अटूट समर्पण, अनुकूलनशीलता और संघर्ष क्षमता की कहानी दर्शाता है। प्रत्येक बचाव समाज के सबसे असुरक्षित सदस्यों की सुरक्षा के लिए आरपीएफ की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।

मंत्रालय ने पिछले सात वर्षों के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि वर्ष 2018 में ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते की महत्वपूर्ण शुरुआत हुई। इस वर्ष, आरपीएफ ने कुल 17,112 पीड़ित बच्चों को बचाया, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं। बचाए गए 17,112 बच्चों में से 13,187 बच्चों की पहचान भागे हुए बच्चों के रूप में की गई, 2105 लापता पाए गए, 1091 बच्चे बिछड़े हुए, 400 बच्चे निराश्रित, 87 अपहृत, 78 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 131 बेघर बच्चे पाए गए। वर्ष 2018 में इस तरह की पहल की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हुए ऑपरेशन के लिए एक मजबूत नींव रखी गई।

वर्ष 2019 के दौरान, आरपीएफ के प्रयास लगातार सफल रहे और लड़कों और लड़कियों दोनों सहित कुल 15,932 बच्चों को बचाया गया। बचाए गए 15,932 बच्चों में से 12,708 भागे हुए, 1454 लापता, 1036 बिछड़े हुए, 350 निराश्रित, 56 अपहृत, 123 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 171 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए।

वर्ष 2020 कोविड महामारी के कारण चुनौतीपूर्ण था, जिसने सामान्य जीवन को बाधित किया और परिचालन पर काफी प्रभाव डाला। इन चुनौतियों के बावजूद, आरपीएफ 5,011 बच्चों को बचाने में कामयाब रही।

वर्ष 2021 के दौरान, आरपीएफ ने अपने बचाव कार्यों में पुनरुत्थान देखा, जिससे 11,907 बच्चों को बचाया गया। इस वर्ष पाए गए और संरक्षित किए गए बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसमें 9601 बच्चों की पहचान भागे हुए के रूप में, 961 लापता के रूप में, 648 बिछड़े हुए, 370 निराश्रित, 78 अपहृत, 82 मानसिक रूप से विकलांग और 123 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए।

वर्ष 2023 के दौरान, आरपीएफ 11,794 बच्चों को बचाने में सफल रही। इनमें से 8916 बच्चे घर से भागे हुए थे, 986 लापता थे, 1055 बिछड़े हुए थे, 236 निराश्रित थे, 156 अपहृत थे, 112 मानसिक रूप से विकलांग थे, और 237 बेघर बच्चे थे। आरपीएफ ने इन असुरक्षित बच्चों की सुरक्षा और उनकी अच्छी देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2024 के पहले पांच महीनों में, आरपीएफ ने 4,607 बच्चों को बचाया है। इसमें 3430 घर से भागे हुए बच्चों को बचाया गया है, शुरुआती रुझान ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हैं। ये संख्या बच्चों के भागने की लगातार जारी समस्या तथा उन्हें अपने माता पिता के पास सुरक्षित पहुंचने के लिए आरपीएफ के किए गए प्रयासों दोनों को दर्शाती हैं।

आरपीएफ ने अपने प्रयासों से, न केवल बच्चों को बचाया है, बल्कि घर से भागे हुए और लापता बच्चों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई है, जिसमें आगे की कार्रवाई और विभिन्न हितधारकों से समर्थन मिला। आरपीएफ का ऑपरेशन का दयारा लगातार बढ़ रहा है, रोज नई चुनौतियों का सामना कर भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास कर रहा है।

रेल मंत्रालय के अनुसार ट्रैक चाइल्ड पोर्टल पर बच्चों की पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है। 135 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्पडेस्क उपलब्ध है। आरपीएफ मुक्त कराए गए बच्चों को जिला बाल कल्याण समिति को सौंप देती है। जिला बाल कल्याण समिति बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप देती है।