कोलकाता, 30 अगस्त । कोलकाता के आर जी कर अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ दरिंदगी के मामले में पीड़िता की मौत के बाद घटनास्थल से नमूने एकत्र करने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के अनुसार, नमूने लेने के दौरान जो गलतियां हुईं, उससे जांच प्रक्रिया प्रभावित हुई है।
सीबीआई सूत्रों का कहना है कि जिस दिन महिला चिकित्सक का शव बरामद किया गया था, उस दिन नमूने एकत्र करने के लिए जो दो फोरेंसिक विशेषज्ञ घटनास्थल पर मौजूद थे, वे इस काम के लिए अधिकृत नहीं थे। इसके बजाय, उनके स्थान पर अन्य विशेषज्ञों ने नमूने लिए। अब सीबीआई इन दोनों विशेषज्ञों की पृष्ठभूमि की गहन जांच कर रही है और उनसे लंबी पूछताछ भी की गई है।
फोरेंसिक प्रक्रिया में गड़बड़ी की बात सामने आई है। फोरेंसिक विशेषज्ञों के मुताबिक, सामान्यत: किसी मृत शरीर से नमूने फोरेंसिक मेडिसिन के विशेषज्ञ ही लेते हैं। ये विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं, जबकि घटनास्थल से नमूने फोरेंसिक शोधकर्ता लेते हैं, जो चिकित्सक नहीं होते लेकिन विज्ञान में प्रशिक्षित होते हैं। फोरेंसिक प्रक्रिया में विशेषज्ञता का होना बहुत जरूरी है, खासकर विषाक्तता, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में।
अब यह जानकारी सामने आई है कि नमूने एकत्र करने का काम उस दिन सही तरीके से नहीं किया गया। सीबीआई के अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन से अधिकारियों के आदेश पर ये दो फोरेंसिक विशेषज्ञ घटनास्थल पर गए थे। साथ ही, बेलगाछिया स्थित राज्य फोरेंसिक प्रयोगशाला के अधिकारियों को भी सीबीआई ने इस संबंध में पत्र भेजा है और उनसे संपर्क बनाए रखा है, लेकिन अभी तक राज्य की फोरेंसिक प्रयोगशाला से कोई रिपोर्ट सीबीआई को नहीं मिली है। सीबीआई का आरोप है कि इस प्रक्रिया में देरी की जा रही है, और इसका उल्लेख हाई कोर्ट में अगली सुनवाई के दौरान किया जाएगा।
हाल ही में एक वीडियो सामने आया है, जिसमें आर जी कर अस्पताल के सेमिनार कक्ष में भारी भीड़ दिखाई दे रही है। हालांकि, लालबाजार पुलिस का दावा है कि कक्ष का सिर्फ 11 फुट का हिस्सा खुला था, जहां लोग खड़े थे। उस दिन सेमिनार कक्ष में पूर्व प्रधानाचार्य संदीप घोष, उनके करीबी वकील, आर जी कर के फोरेंसिक मेडिसिन शिक्षक डॉक्टर देबाशीस सोम और कुछ अन्य चिकित्सक तथा अस्पताल चौकी के पुलिसकर्मी भी मौजूद थे।
सीबीआई के जांचकर्ताओं का कहना है, “घटनास्थल पर हत्यारे के पैर और हाथ के निशान के नमूने अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। सेमिनार कक्ष में मौजूद अनुभवी चिकित्सकों और वकीलों को इस बारे में जानकारी होनी चाहिए थी। फिर भी ऐसा कैसे हुआ?” इसी सवाल का जवाब पाने के लिए संदीप घोष और देबाशीस सोम से पूछताछ की गई है, लेकिन दोनों ने इस मामले पर स्पष्ट रूप से जवाब देने से बचने की कोशिश की है।
वीडियो सामने आने के बाद कई डॉक्टरों ने सवाल उठाया है कि क्या नमूना संग्रह प्रक्रिया में जानबूझकर कोई गड़बड़ी की गई थी? क्या फोरेंसिक मेडिसिन विशेषज्ञ इस मामले में प्रमाण छुपाने के लिए कोई सलाह दे रहे थे?
सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा, “मृत शरीर से नमूने संग्रह में धुंधला दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि मामले को कमजोर करने के लिए प्रमाण छुपाने की कोशिश की गई है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि अस्पताल के अधिकारियों ने कहा था कि शरीर सुबह नौ बजे के बाद देखा गया था, लेकिन असल में उस दिन सुबह से ही सेमिनार कक्ष में भीड़ थी।
जाने-माने वकील बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने कहा, “एक के बाद एक प्रमाण छुपाने के सबूत सामने आ रहे हैं। अब ऐसा लग रहा है कि मृत शरीर मिल जाना ही एक बड़ी बात है। यदि अवसर का लाभ उठाया जाता, तो शायद मृत शरीर भी गायब हो जाता।”
सीबीआई की जांच जारी है, और आने वाले दिनों में इस मामले में और भी खुलासे होने की उम्मीद है।