नई दिल्ली, 16 जून । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक साइप्रस यात्रा ने भारत की वैश्विक कूटनीति को नई दिशा दी है। अपनी दो दिवसीय यात्रा (15-16 जून) के दौरान प्रधानमंत्री ने साइप्रस की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराया।द्विपक्षीय संबंधों की दिशा तय करने के लिए 2025 से 2029 तक की एक विस्तृत ‘एक्शन प्लान’ तैयार करने पर सहमति बनी। दोनों देशों के विदेश मंत्रालय इस कार्य योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के साथ आज औपचारिक वार्ता की। राष्ट्रपति भवन पहुंचने पर उनका औपचारिक स्वागत किया गया। एक दिन पहले राष्ट्रपति स्वयं एयरपोर्ट पर स्वागत के लिए पहुंचे थे। यह दोनों देशों की गहरी मित्रता को दर्शाता है।दोनों नेताओं ने साझा मूल्यों, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई। प्रधानमंत्री ने अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा और भारत के साथ एकजुटता के लिए साइप्रस का आभार जताया। साथ ही उन्होंने साइप्रस की एकता और ‘साइप्रस प्रश्न’ के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत के समर्थन को दोहराया।

उन्होंने व्यापार, निवेश, स्टार्टअप, रक्षा, फिनटेक, एआई, साइबर व समुद्री सुरक्षा सहित सहयोग के नए क्षेत्रों पर सहमति जताई। दोनों पक्षों ने रणनीतिक सहयोग के लिए पांच वर्षीय रोडमैप बनाने का निर्णय लिया। रक्षा साझेदारी को मजबूती देने वाले जनवरी 2025 के समझौते की भी सराहना की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी) को क्षेत्रीय शांति व समृद्धि का वाहक बताया। संयुक्त राष्ट्र सुधार और भारत की स्थायी सदस्यता पर साइप्रस के समर्थन के लिए उन्होंने राष्ट्रपति का धन्यवाद किया।

भारत और साइप्रस ने संयुक्त घोषणा में ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (आईएमईसी)’ को एक रणनीतिक और परिवर्तनकारी परियोजना के रूप में पहचाना। यह गलियारा भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ते हुए व्यापार, संपर्क और टिकाऊ विकास को नया आयाम देगा। साइप्रस को यूरोप का प्रवेश द्वार मानते हुए दोनों पक्षों ने इसे एक क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स हब के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। भारतीय शिपिंग कंपनियों को साइप्रस में उपस्थिति बढ़ाने और संयुक्त समुद्री परियोजनाओं के ज़रिये समुद्री सहयोग को मजबूत करने की सहमति बनी। दोनों नेताओं ने वैश्विक शासन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। साइप्रस ने सुरक्षा परिषद के विस्तार में भारत को स्थायी सदस्य बनाने के लिए अपना समर्थन दोहराया।

दोनों देशों ने आतंकवाद के वित्तपोषण, पनाहगाह और बुनियादी ढांचे को समाप्त करने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता बताई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के अंतर्गत आतंकवाद से संबंधित प्रस्तावों के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग की।अगले साल यूरोपीय संघ परिषद की अध्यक्षता संभालने जा रहे साइप्रस ने भारत-ईयू रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने का वादा किया। दोनों पक्षों ने 2025 तक ईयू-भारत मुक्त व्यापार समझौते के समापन का समर्थन किया। समुद्री, हरित ऊर्जा, रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग की दिशा में प्रगति की सराहना की गई।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति क्रिस्टोडुलाइड्स ने सांस्कृतिक और जन-संपर्क को रणनीतिक संपत्ति मानते हुए एक ‘मोबिलिटी पायलट प्रोग्राम’ की घोषणा की। सीधे हवाई संपर्क और पर्यटन सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों की शुरुआत की गई।

दरअसल, साइप्रस का राजनीतिक और क्षेत्रीय विवाद 1974 में तुर्किये द्वारा साइप्रस के उत्तरी भाग पर सैन्य कब्जे के बाद उपजा था। इसके चलते द्वीप अब दक्षिण में यूनानी साइप्रस और उत्तर में तुर्किये प्रभावित ‘उत्तर साइप्रस तुर्की गणराज्य’ के रूप में बंटा है, जिसे केवल तुर्किये मान्यता देता है। संयुक्त राष्ट्र इसे एक विभाजित राष्ट्र मानता है।