प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ में महाराणा प्रताप जयंती समारोह का उद्घाटन
सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल का उद्बोधन
उदयपुर, 9 जून। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का संघर्ष साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं, बल्कि संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए था। उन्होंने आततायी-बर्बर विचार वाली ताकतों के सामने खड़ा होने की हिम्मत की। मातृभूमि के प्रति समर्पण का उन्होंने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जिसकी बदौलत आज भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी जयकार होती है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने शनिवार को यहां प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ में महाराणा प्रताप जयंती समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर कही। उन्होंने कहा कि भारत में कई बर्बर आक्रमणकारी बाहर से आए और ऐसे आक्रमणकारियों के सामने हिम्मत से खड़े होने वाले थे महाराणा प्रताप। प्रताप की सेना का शौर्य ऐसा था कि आत्म समर्पण नहीं करेंगे, अंतिम सांस तक लड़ेंगे।
जौहर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि जौहर क्यों हुआ इसके कारणों पर भी मंथन करना होगा। यह हमारे समाज के विघटित सामर्थ्य का परिणाम था; असंगठित होने के कारण आक्रमणकारियों को लाभ मिला, राजाओं के बाद तो एक कम्पनी आ गई और उसने देश पर राज किया। छह उदाहरण तो डॉ. अम्बेडकर ने दिए जिसमें उन्होंने बताया कि राजाओं ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि भारत हर क्षेत्र में कीर्ति कलश के रूप में विद्यमान था, लेकिन आपस में एक-दूसरे का साथ नहीं देने के कारण बाहरी आक्रमणकारी हावी होते गए। उन्होंने आह्वान किया कि ऐसी ताकतें आज भी देश और समाज को तोड़ने के प्रयास कर रही हैं, हमारा दायित्व है कि हमारी ताकत को विघटित न होने दें।