नयी दिल्ली , 27 अक्टूबर । भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री पद्मविभूषण डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने मौजूदा विश्व को ‘अत्यंत खतरनाक एवं विनाशकारी टकराव’ के मुहाने पर खड़ा बताया है और कहा है कि वैश्विक समुदाय के लिए सर्वसमावेशी दर्शन देने वाले भारतीय जीवन मूल्य ही मानवता की रक्षा में समर्थ हैं।

डॉ. जोशी ने गुरुवार देर शाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह मनमोहन वैद्य की अंग्रेज़ी में लिखित पुस्तक “ वी एंड दि वर्ल्ड अराउंड” के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता देश के प्रख्यात संत शिरोमणि जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने की और संचालन वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने किया। मनमोहन वैद्य ने पुस्तक की विषयवस्तु पर प्रकाश डाला और प्रकाशक वाणी प्रकाशन के मुखिया अरुण माहेश्वरी ने अतिथियों का स्वागत किया। ”

डॉ.जोशी ने अपने भाषण में कहा कि यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर की बहुचर्चित पुस्तक “वी” का अगला अंक प्रतीत होता है। “वी” को लेकर उठे विवादों एवं भ्रांतियों का गंभीरतापूर्वक जवाब इस पुस्तक में दिया गया है। उस पुस्तक से ‘वी’ यानी ‘हम’ को हमारे चारों ओर की दुनिया से जोड़ कर समग्रता में प्रस्तुत किया गया है।

उन्होंने कहा कि हमारे चारों ओर आज क्या हो रहा है, कैसा वातावरण है, इसे देखें तो पता चलेगा कि संयुक्त राष्ट्र अप्रांसगिक और अप्रभावी हो गया है। नरसंहार हो रहे हैं, बम गोले चल रहे हैं, धमकियां दी जा रहीं हैं, विश्व की अर्थव्यवस्था जर्जर हो रही है, दुनिया में कट्टरता एवं कटुता बढ़ रही है। जिस समय ‘वी’ लिखी गयी थी, उस समय से लेकर आज ‘वी एंड अराउंड दि वर्ल्ड’ लिखने तक के अंतराल में विश्व में अशांति क्यों बढ़ रही है, इसके कारणों को समझना होगा।

डॉ. जोशी ने अमेरिका एवं यूरोप में राष्ट्र एवं राज्य की अवधारणाओं की विवेचना की और कहा कि राज्य को सर्वोपरि मानने के कारण ही पश्चिम एशिया में झगड़े हो रहे हैं। राज्यों के आधार पर बंटे देशों में सभ्यता, संस्कृति, भाषा, रीति- रिवाज आदि को लेकर घोर भ्रम फैला है और इस वजह से देश को एकजुट एवं संगठित रखना मुश्किल हो रहा है। उन देशों में उठने वाले ‘हम’ के अस्तित्व से जुड़े सवालों के उत्तर खोजे जा रहे हैं लेकिन भारत ने ऐसे प्रश्नों का समाधान हज़ारों वर्षों पूर्व ही कर लिया था। हमने मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों एवं वनस्पतियों में भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया है। आज के वैज्ञानिक युग में हमारी मान्यताओं को इलेक्ट्रान आदि दूसरे उद्धरणों से स्वीकार किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि मशीनीकृत विश्व एवं उसके उपभोग की मानसिकता में विखंडन एवं विरोधाभासी दर्शन में सबसे खतरनाक उपादान कृत्रिम मेधा के रूप में उभर रही है। उन्होंने कहा कि आज का समय बहुत ही खतरनाक है, विश्व नेताओं ने इसे दुनिया के आम नागरिकों से छिपा रखा है। वे नहीं बता रहे हैं कि आज हमारे सामने सबसे विनाशकारी खतरा क्या है। ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के कारण तमाम देश बहुत परेशान हैं।

उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति में विदेशों में उठे हर सवाल का समाधान है और मौजूदा टकराव को हमारे सर्वसमावेशी दर्शन से ही टाला जा सकता है।

इससे पहले मनमोहन वैद्य ने पुस्तक के बारे में बताया कि इसमें उनके 34 लेखों का संग्रह है जिनमें से 29 लेख वर्ष 2017 से 2021 के दौरान लिखे गये हैं। उन्होंने माना कि इस पुस्तक में संघ को लेकर लगाये जाने वाले आक्षेपों एवं आरोपित भ्रांतियों का उत्तर मिलता है। उन्होंने कहा कि संघ को समझने को लेकर लोगों में भारी जिज्ञासा है लेकिन संघ  को उसके सान्निध्य में आकर समझा जा सकता है और संघ के विचार को समझने के लिए भारत के आध्यात्मिक दर्शन को समझना पड़ता है।

वैद्य ने कहा कि भारत में भौतिक सुख समृद्धि प्राप्त करने के लिए जो पढ़ा जाता है, वह अविद्या कही गयी है और जो अध्यात्म का मार्ग दिखाये एवं जीवन को मुक्त करने की राह दिखाए, उसे विद्या कहते हैं। उन्होंने कहा कि इतिहास को देखें तो पाएंगे कि भारत में रक्षा, राजस्व जैसे विषयों को छोड़ कर सब कुछ समाज के हवाले रहता था। राष्ट्र का राज्य पर कम से कम अवलंबन रहेगा तो राष्ट्र स्वावलंबी बनेगा। उन्होंने कहा कि हमारे यहां समाज को लौटाना है, इसे धर्म माना गया और उपासना का अर्थ अंदर के देवत्व को प्रकट करने के लिए धर्म, भक्ति, ज्ञानयोग एवं कर्मयोग का प्रयोग करके मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करना है।

उन्होंने कहा,“ आज कल हमारी दृष्टि हम की बजाय मैं पर संकुचित होकर केन्द्रित हो गयी है। हमें समझना होगा कि मैं की दृष्टि छोटी है, इसे आंखें खोल कर देखेंगे तो हम बनेंगे। हमें यह भी समझना होगा कि समाज को लौटाना भी धर्म है। इसका परिचय कोरोना महामारी के दौरान मिला। इसी से सामाजिक पूंजी तैयार होती है, हर व्यक्ति समृद्ध बनता है। जितना हम अर्जित करें, उससे अधिक समाज को लौटा सकें। यही भारत की विशेषता है। अनेकता में विविधता और विविधता में एकता देखना ही भारत का दर्शन है। ”

वैद्य ने गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर को उद्धृत करते हुए कहा कि भारत में हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई आपस में लड़ते जरूर हैं लेकिन वे लड़ते हुए मर नहीं जाते हैं, बल्कि सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं। इसी के आधार में हिन्दुत्व है। दुनिया ऐसे भारत को देखना एवं अपनाना चाहती है जिसकी आध्यात्मिक पहचान हो, वैचारिक चिंतन हो और हर उपासना को मानने वाला हो।

इस पुस्तक में वैद्य ने एक संवेदनशील अध्याय अपने पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक माधव गोविंद वैद्य पर भी लिखा है।