
कोलकाता, 10 जून । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को विधानसभा में स्पष्ट किया कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में किसी भी व्यक्ति को शामिल करने का एकमात्र मानदंड सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन है, न कि उसका धर्म। उनका बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2011 में उनके सत्ता में आने के बाद से लेकर 2025 तक बने सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। आरोप है कि ममता बनर्जी के सरकार आने के बाद ओबीसी सर्टिफिकेट केवल मुस्लिम समुदाय के लोगों के बनाए गए थे, जबकि इस कैटेगरी में आने वाले पिछड़े बंगाली हिंदुओं को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया था।
मुख्यमंत्री ने यह बयान ऐसे समय दिया जब सोशल मीडिया पर ओबीसी आरक्षण को लेकर भ्रामक प्रचार का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोग जानबूझकर धार्मिक आधार को मुद्दा बना रहे हैं, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। उन्होंने दोहराया कि राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से सर्वेक्षण कर लोगों को ओबीसी श्रेणी में शामिल किया गया है।
ममता बनर्जी ने बताया कि राज्य में अब तक ओबीसी-ए श्रेणी में 49 उपवर्ग और ओबीसी-बी श्रेणी में 91 उपवर्ग को शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि जिन वर्गों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अधिक पिछड़ी है, उन्हें ओबीसी-ए में रखा गया है, जबकि अपेक्षाकृत कम पिछड़े वर्गों को ओबीसी-बी श्रेणी में शामिल किया गया है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा गठित आयोग वर्तमान में 50 नए उपवर्गों पर सर्वेक्षण कर रहा है, ताकि उनकी स्थिति का आकलन कर यह तय किया जा सके कि उन्हें ओबीसी सूची में जोड़ा जा सकता है या नहीं।
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग की वित्तीय वर्ष 2024-25 की वार्षिक रिपोर्ट भी सदन के पटल पर रखी। उन्होंने कहा कि ओबीसी सूची में की गई सभी प्रविष्टियां व्यापक फील्ड सर्वेक्षण और आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर की गई हैं।
ममता बनर्जी ने जोर देकर कहा कि उनकी सरकार सामाजिक न्याय और समान अवसर देने के सिद्धांत पर काम कर रही है और इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का धार्मिक भेदभाव नहीं किया जा रहा है।