
पटना, 20 नवंबर। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देश की राजनीति में नया इतिहास रच दिया है । लोकतंत्र की जननी कही जाने वाली बिहार की धरती पर यह उपलब्धि उन्हें उन विरले नेताओं की श्रेणी में ले जाती है, जिन्होंने लंबी राजनीतिक यात्रा के बावजूद अपने नेतृत्व की स्वीकार्यता कायम रखी है।
ढलती उम्र और चुनौतियों के बावजूद कायम जनविश्वास
स्वास्थ्य, उम्र और लंबे शासनकाल के कारण लोकप्रियता घटने जैसे आकलनों को पीछे छोड़ते हुए नीतीश कुमार ने हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में उनका प्रभाव अभी भी अक्षुण्ण है।
2005 में ‘सुशासन बाबू’ के रूप में पहचान बनाने वाले नीतीश कुमार ने जातीय ध्रुवीकरण और अपराधीकरण जैसे जटिल मुद्दों से जूझते बिहार में शासन का एक स्थायी मॉडल गढ़ा है।
विपक्ष द्वारा लगाए गए ‘अचेत मुख्यमंत्री’, नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव और मीडिया से दूरी जैसे आरोपों के बावजूद जनता ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को ऐतिहासिक जनादेश दिया। परिणामों ने साबित कर दिया कि “बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार हैं” का नारा आज भी प्रभावी है।
छह महीने पहले जो असंभव लग रहा था, वह जनादेश ने संभव कर दिया
कुछ महीने पहले तक राजनीतिक विश्लेषक महागठबंधन को मजबूत और नीतीश कुमार को कमजोर स्थिति में मान रहे थे। लेकिन चुनाव परिणामों ने हर राजनीतिक अटकल को ध्वस्त करते हुए दिखा दिया कि बिहार की जनता अब भी नीतीश को स्थिरता और निरंतरता का प्रतीक मानती है।
नीतीश कुमार का लगातार पांचवां विधानसभा चुनाव जीतना और 10वीं बार मुख्यमंत्री बनना विशेष रूप से हिंदी पट्टी की राजनीति में एक असाधारण उपलब्धि है, जहां सत्ता-परिवर्तन की उम्मीदें प्रबल रहती हैं।
मोदी–नीतीश फैक्टर और भाजपा–जदयू की बराबर साझेदारी
इस बार राजग में भाजपा और जदयू दोनों ने 101–101 सीटों पर चुनाव लड़कर बराबर की साझेदारी दिखाई। चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की संयुक्त छवि गठबंधन के लिए निर्णायक साबित हुई। 2010 में 200 से अधिक सीटें जीतने का कारनामा दोहराया गया, जिसने यह स्पष्ट किया कि इस चुनाव में दोनों दलों के बीच वोट ट्रांसफर कांग्रेस–महागठबंधन की तुलना में कहीं अधिक सहज रहा।
महिला वोटर्स बने राजग की जीत का निर्णायक आधार
नीतीश कुमार के पक्ष में इस चुनाव का सबसे बड़ा मोर्चा महिलाओं का रहा। ‘जीविका दीदियों’ और ‘दस-हजारिया’ योजना के अंतर्गत 1.4 करोड़ से अधिक महिलाओं को 10,000 रुपये के नकद लाभ ने उनकी लोकप्रियता को अभूतपूर्व ऊँचाई दी। इस बार 71.6% महिलाओं ने मतदान किया, जो पुरुषों (62.8%) से लगभग 9% अधिक है। यह महिला समर्थन राजग की जीत का वास्तविक इंजन सिद्ध हुआ।
संगठन की मजबूती और नीतीश के वोट ट्रांसफर की क्षमता फिर साबित
2020 की तुलना में जदयू इस बार कहीं अधिक संगठित दिखाई पड़ी। पंचायत स्तर के कार्यकर्ताओं, स्थानीय नेतृत्व और भाजपा के साथ सामंजस्यपूर्ण तालमेल ने सीट-दर-सीट लड़ाई को मजबूत किया।
एक बार फिर यह सिद्ध हुआ कि नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत है- “वे जिस गठबंधन में जाते हैं, उनका वोट भी वहीं जाता है।”
‘सुशासन बाबू’ और ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि अब भी बरकरार
विपक्ष ने भले ही उन पर स्वास्थ्य और प्रशासनिक क्षमता को लेकर सवाल उठाए हों, लेकिन उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी उंगली नहीं उठी। उनके मंत्रियों पर आरोप लगे, पर नीतीश की छवि ‘मिस्टर क्लीन’ के रूप में कायम रही — यही उनकी राजनीतिक पूँजी भी है।






